एनपीए में गिरावट: केंद्र और आरबीआई की संयुक्त रणनीति से हासिल हुई बड़ी उपलब्धि
2025 में पब्लिक सेक्टर बैंकों का एनपीए घटकर 2.58% पर पहुंचा: केंद्र और आरबीआई के प्रयास रंग लाए
“एनपीए में गिरावट को लेकर भारत की बैंकिंग व्यवस्था ने एक नई दिशा पकड़ी है। पब्लिक सेक्टर बैंकों के ग्रॉस एनपीए (Non-Performing Assets) 2025 में घटकर 2.58% पर आ गए हैं, जो पिछले कई वर्षों में सबसे बेहतर स्तर माना जा रहा है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस सुधार का श्रेय केवल एक संस्था को नहीं दिया जा सकता, बल्कि यह केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की संयुक्त, फोक्स्ड और पारदर्शी रणनीति का नतीजा है।”
अर्थशास्त्री पंकज जायसवाल का विश्लेषण – केंद्र और आरबीआई ने मिलकर निभाई बड़ी भूमिका
अर्थशास्त्री पंकज जायसवाल का मानना है कि एनपीए में सुधार के पीछे नीति, निगरानी और निष्पादन का त्रिकोण जिम्मेदार है। उन्होंने कहा:
“एनपीए में गिरावट आरबीआई और केंद्र दोनों के प्रयासों से संभव हो पाई है। दोनों ने एक ही दिशा में काम करते हुए बैंकिंग सेक्टर में आत्मविश्वास लौटाया।”
एनडीए सरकार ने खत्म किया ‘एवरग्रीनिंग कल्चर’
उद्योग क्षेत्र में पुराने लोन अकाउंट थे स्ट्रेस में
एक समय ऐसा था जब उद्योग जगत में अनेक खाते "स्ट्रेस्ड" घोषित हो रहे थे। उन्हें बार-बार नए ऋण देकर 'एवरग्रीन' बनाए रखा जा रहा था।
आईबीसी ने बदली तस्वीर
केंद्र सरकार ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड(IBC)लागू किया।फुल डिफॉल्टर्स को प्रमोटरशिप से बाहर किया गया।स्ट्रेस में गई कंपनियों के लिए रिसॉल्यूशन प्लान प्रस्तुत किए गए।इससे खराब कर्ज को खत्म करने का प्रभावी ढांचा मिला।
एनपीए नियंत्रण के लिए आरबीआई के प्रमुख कदम
आरबीआई ने एनपीए की निगरानी और रोकथाम के लिए कई रणनीतिक निर्णय लिए, जिनमें शामिल हैं:
एसेट क्वालिटी रिव्यू(AQR): बैंकों को उनकी लोन बुक की गहराई से जांच करनी पड़ी।शाखा स्तर पर स्ट्रेस्ड एसेट्स की निगरानी: रियल-टाइम मॉनिटरिंग सुनिश्चित की गई।प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System): संभावित डिफॉल्टर्स की पहचान पहले ही कर ली जाती है।
इन पहलों ने बैंकों को समय रहते जोखिम की पहचान और समाधान का अवसर दिया।
सरकार की रणनीति: पारदर्शिता, फोकस और टेक्नोलॉजी पर जोर
\सरकार की नीति लचीली नहीं, स्पष्ट और फोक्स्ड रही। पंकज जायसवाल कहते हैं:
“सरकार ने एनपीए से निपटने में पारदर्शिता दिखाई और निर्णय लेने में साहसिक रुख अपनाया। इससे बैंकों को रीसेट करने का मौका मिला।”
सार्वजनिक बैंकों को बनाया जा रहा है प्राइवेट बैंकों की तरह सक्षम
बिजनेस मॉडल में बदलाव
सरकार ने पब्लिक सेक्टर बैंकों के बिजनेस मॉडल को नया रूप दिया। अब बैंक अधिकतम लाभ, न्यूनतम जोखिम की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
टेक्नोलॉजी अपग्रेड और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार
डिजिटल बैंकिंग टूल्स की शुरुआतलोन प्रक्रिया में स्वचालनग्राहक की क्रेडिट हिस्ट्री का बारीकी से मूल्यांकन
लोन देने से पहले विस्तृत रिव्यू अनिवार्य
अब लोन वितरण से पहले:
ग्राहक की क्रेडिट स्कोर और पृष्ठभूमि का विश्लेषणप्रोजेक्ट पोटेंशियल की गणनासंभावित रीपेमेंट क्षमता का मूल्यांकन
\इससे बुरे कर्ज की संभावना बेहद कम हो गई है।
क्यों जरूरी था एनपीए नियंत्रण?
एनपीए में बढ़ोतरी से बैंकिंग सिस्टम में धोखाधड़ी, लापरवाही और अनिश्चितता आती है।बैंकों का लोन देने का आत्मविश्वास घटता है।निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का भारत पर भरोसा कम होता है।यही वजह थी कि केंद्र और आरबीआई ने इसे एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में लिया।
एनपीए में गिरावट भारत की बैंकिंग सफलता का संकेत
एनपीए में गिरावट भारत के आर्थिक स्वास्थ्य का प्रमाण है। यह दिखाता है कि यदि नीति निर्धारण, नियामक निगरानी और राजनीतिक इच्छाशक्ति साथ काम करें, तो बड़े सुधार संभव हैं।
“आरबीआई और केंद्र सरकार के सामूहिक प्रयासों से न केवल बैंकों की सेहत सुधरी है, बल्कि निवेशकों का भरोसा भी लौटा है। अब बैंकों के पास नया आत्मविश्वास है, और वे लोन देने में ज्यादा विवेकशील और सुरक्षित बन गए हैं।”
