भारत की अर्थव्यवस्था पर राहुल गांधी के सवाल, लेकिन आंकड़े कर रहे हैं उनके दावों का खंडन
भारत की अर्थव्यवस्था पर राहुल गांधी के सवाल, लेकिन आंकड़े कर रहे हैं उनके दावों का खंडन
“हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर एकतरफा टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों पर सवाल खड़े करते हुए दावा किया कि भारत की अर्थव्यवस्था दम तोड़ चुकी है। हालांकि, आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय उनके दावों को गलत साबित करती है।”
ट्रंप के बयान पर राहुल गांधी की प्रतिक्रिया: एक सियासी अवसर या आर्थिक चिंता?
डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत की अर्थव्यवस्था पर दिए गए बयान को राहुल गांधी ने हाथों-हाथ लिया। उन्होंने इसे भारत की आर्थिक कमजोरी का प्रमाण मानते हुए मोदी सरकार की आलोचना की। लेकिन क्या किसी विदेशी नेता के राजनीतिक बयान को आधार बनाकर देश की अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाना उचित है? राहुल गांधी का यह रवैया केवल सत्ता पक्ष ही नहीं, बल्कि विपक्ष के कुछ वरिष्ठ नेताओं को भी असहज लगा।
भाजपा का पलटवार: राहुल गांधी ने देश की मेहनत का अपमान किया
भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी के बयान को कड़ी आलोचना के साथ खारिज किया। पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि राहुल गांधी ने 140 करोड़ भारतीयों की मेहनत और आत्मबल का अपमान किया है। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर कुछ "डेड" है, तो वो राहुल गांधी की राजनीति है। बीजेपी ने IMF और वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था इस समय दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। महंगाई दर छह साल के न्यूनतम स्तर पर है और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर रिकॉर्ड स्तर पर काम कर रहा है।
राहुल के बयान से कांग्रेस और सहयोगी दल भी सहमत नहीं
राहुल गांधी की टिप्पणी को लेकर खुद कांग्रेस पार्टी में भी एकमत नहीं दिखा। तीन पूर्व केंद्रीय मंत्री—शशि थरूर, मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला—ने ट्रंप के बयान का समर्थन करने से इनकार किया। शशि थरूर ने साफ कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था जीवंत और लचीली है। राजीव शुक्ला ने कहा कि भारत की आर्थिक नींव नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के समय में रखी गई, जिसे मोदी सरकार भी मजबूती से आगे बढ़ा रही है। मनीष तिवारी ने इसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सफलता का प्रमाण बताया। शिवसेना (उद्धव गुट) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने राहुल गांधी की टिप्पणी को “अहंकार और अज्ञानता” से भरा बताया।
आर्थिक आंकड़ों की ज़ुबानी: राहुल के आरोप बनाम सच्चाई
यदि हम आंकड़ों की बात करें, तो राहुल गांधी के दावों की पुष्टि नहीं होती। आइए नजर डालते हैं उन तथ्यों पर जो भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति स्पष्ट करते हैं:
- भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जो 2014 में 11वें स्थान पर थी।
- ग्रोथ रेट: IMF के अनुसार, भारत 2025-26 में 6.4% की दर से बढ़ेगा, जो अमेरिका (1.9%) और जापान (0.7%) से कहीं अधिक है।
- 2023-24 में भारत की वास्तविक GDP वृद्धि 9.2% रही, जो एक दशक में सबसे ज़्यादा है।
- भारत के पास 121 यूनिकॉर्न स्टार्टअप हैं, जिससे भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है।
- ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग 2014 में 142 से बढ़कर 2020 में 63 पर पहुंच गई।
GST और विदेशी निवेश: मजबूत होती अर्थव्यवस्था के प्रमाण
जुलाई 2025 में भारत सरकार को 1.96 लाख करोड़ रुपये का GST संग्रह हुआ, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.5% अधिक है। लगातार चौथे महीने ₹1.80 लाख करोड़ से ऊपर का संग्रह देश की आर्थिक गतिविधियों में मजबूती को दर्शाता है।
- एफडीआई (FDI): भारत ग्रीनफील्ड एफडीआई में दुनिया में शीर्ष पर है।
- निर्यात: 2024-25 में भारत का कुल निर्यात 824.9 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें स्मार्टफोन, दवाइयां और वस्त्र शामिल हैं।
जनसंख्या और कार्यबल: भारत का डेमोग्राफिक डिविडेंड
भारत की आधी से ज्यादा आबादी 25 साल से कम उम्र की है। देश का कार्यबल इस समय 52 करोड़ का है, जो 2030 तक 60 करोड़ तक पहुंच जाएगा। औसत आयु केवल 28.8 वर्ष है, जो अमेरिका और यूरोप से काफी कम है। इससे तकनीकी क्षेत्रों में भारत को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलता है।
शेयर बाजार, मोबाइल निर्माण और ऑटो सेक्टर में भारत की ताकत
- शेयर बाजार: भारत दुनिया का चौथा सबसे मजबूत शेयर बाजार बन गया है।
- मोबाइल निर्माण: भारत दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है।
- ऑटो सेक्टर: भारत अब तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल उत्पादक है।
राजनीतिक आरोप बनाम ठोस आर्थिक प्रदर्शन
राहुल गांधी के बयान को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वे आर्थिक तथ्यों से अधिक सियासी अवसर पर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था के आंकड़े उनकी बातों के विपरीत कहानी कहते हैं। ट्रंप जैसे नेताओं के राजनीतिक बयानों को घरेलू राजनीति में हथियार बनाना एक अपरिपक्व और राष्ट्रहित के खिलाफ रवैया माना जा सकता है। जब खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सहयोगी दल राहुल के साथ खड़े नहीं दिखाई देते, तो यह तय करना आसान हो जाता है कि इस बार राहुल गांधी सही नहीं हैं।
“भारत की अर्थव्यवस्था पर राहुल गांधी के सवाल केवल एक सियासी बयानबाज़ी दिखते हैं, जिनका कोई ठोस आर्थिक आधार नहीं है। IMF, वर्ल्ड बैंक, जीएसटी, एफडीआई और निर्यात जैसे दर्जनों आंकड़े यह बताते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और आगे भी मजबूती से बढ़ रही है। यह वक्त भारत की आर्थिक प्रगति को पहचानने और उसे विश्व स्तर पर प्रस्तुत करने का है, न कि राजनीतिक लाभ के लिए उसे कमतर दिखाने का।”
