न ही यह उचित है और न ही वांछित… जस्टिस नागरत्ना ने CJI चंद्रचूड़ की टिप्पणी पर जताई असहमति
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने हाल ही में Chief Justice of India (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की एक महत्वपूर्ण टिप्पणी पर असहमति जताई। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह न तो उचित है और न ही वांछित, जब CJI ने एक मामले में अपनी टिप्पणी दी, जिस पर जस्टिस नागरत्ना ने अपनी अलग राय दी और इसे सही नहीं माना।
असहमति की वजह
यह असहमति उस समय उत्पन्न हुई जब CJI चंद्रचूड़ ने एक मामले में अदालत की अवमानना की बात करते हुए टिप्पणी की थी, जिसके बाद जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कोर्ट के भीतर इस तरह की टिप्पणी देना ठीक नहीं है। उनका मानना था कि जब अदालत के वरिष्ठतम न्यायाधीश एक टिप्पणी करते हैं, तो वह उनके अधीन काम करने वाले अन्य जजों को प्रभावित कर सकते हैं और यह न्यायिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है।
जस्टिस नागरत्ना की टिप्पणी
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया के लिए, बल्कि अदालत की स्वतंत्रता के लिए भी उचित नहीं है कि किसी भी मामले में इस तरह की सार्वजनिक टिप्पणी की जाए। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निर्णय की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।” उनका कहना था कि न्यायिक पद्धतियों को अपारदर्शी बनाए बिना मामलों का समाधान करना चाहिए और अदालतों में अनावश्यक विवाद से बचना चाहिए।
CJI चंद्रचूड़ की टिप्पणी
CJI चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक मामले में कहा था कि यदि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है, तो यह अदालत की अवमानना के समान होगा, और इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। उनकी यह टिप्पणी कई वकीलों और जजों द्वारा आलोचनात्मक रूप से ली गई थी, और इसे अदालत के भीतर एक गंभीर मुद्दा माना गया था।
न्यायपालिका में असहमति का महत्त्व
यह असहमति न्यायपालिका के भीतर महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाती है कि सुप्रीम कोर्ट में फैसलों और कार्यों को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। जस्टिस नागरत्ना का यह बयान अदालत में सुधार की दिशा में एक कदम और संकेत करता है कि न्यायपालिका के भीतर किसी भी टिप्पणी को सही संदर्भ में लिया जाना चाहिए और न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए।