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बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कहा- “शासन मनमाने तरीके से घर नहीं गिरा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कोई भी सरकार या प्रशासन मनमाने तरीके से नागरिकों के घरों को गिराने का अधिकार नहीं रखता। यह फैसला उन कई मामलों के संदर्भ में लिया गया है, जहां प्रशासन ने अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए घरों और संपत्तियों को ध्वस्त किया। कोर्ट ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई और प्रशासन से तर्कसंगत और न्यायपूर्ण तरीके से कार्यवाही करने की उम्मीद जताई।

कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “शासन को किसी भी नागरिक की संपत्ति को गिराने से पहले पूरी तरह से वैध प्रक्रिया का पालन करना होगा। यदि कोई अवैध निर्माण है, तो उसे न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से ही नष्ट किया जा सकता है, न कि मनमाने तरीके से।” कोर्ट ने इस फैसले के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार की प्रशासनिक कार्रवाई से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया, जैसे कि नोटिस, मौका देने, और सुनवाई के अधिकार को मान्यता दी जानी चाहिए।

बुलडोजर एक्शन पर कोर्ट की आपत्ति

इस मामले में, जो “बुलडोजर एक्शन” के तहत घरों और दुकानों को ध्वस्त किए जाने से जुड़ा था, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि यदि प्रशासन किसी इलाके में अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, तो उसे नागरिकों को पर्याप्त समय और अवसर देना होगा ताकि वे अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकें। कोर्ट ने इस तरह की ध्वस्तीकरण कार्रवाई को नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में माना, यदि यह बिना उचित प्रक्रिया के की जाती है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला विशेष रूप से तब सामने आया जब कुछ राज्यों में, खासकर दिल्ली और उत्तर प्रदेश में, प्रशासन ने कथित रूप से अवैध निर्माणों को तोड़ने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया था। इन कार्यवाहियों में कई ऐसे घर और दुकानें भी शामिल थीं, जो वर्षों से वहां थीं और जिनके मालिकों के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन कार्रवाइयों को चुनौती दी, यह कहते हुए कि नागरिकों को उनकी संपत्ति को बचाने का पूरा अधिकार है, और सरकार को कार्रवाई करने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

अदालत का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि भविष्य में किसी भी प्रशासनिक इकाई को बिना उचित सुनवाई और कानूनी प्रक्रिया के बुलडोज़र कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही, कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को यह निर्देश दिया कि वे ऐसी कार्रवाइयों से पहले नागरिकों को नोटिस देने, उनके दस्तावेज़ जांचने और उन्हें अपने बचाव में सुनवाई का अवसर देने के लिए तैयार रहें। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासन को इस तरह की कार्रवाइयों में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए, ताकि नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न हो।

प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक हलकों से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कई कार्यकर्ताओं और नागरिक अधिकार संगठनों ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, जबकि कुछ प्रशासनिक अधिकारियों ने इसे लागू करने में कठिनाई की बात कही है।

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