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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ-धार्मिक जुलूसों पर सवाल: हिंदू-मुस्लिम क्षेत्रों में समान नियमों की मांग


“धार्मिक जुलूसों को लेकर एक बार फिर सामाजिक चर्चा का माहौल बना हुआ है। सवाल उठाया गया है कि यदि मुस्लिम समुदाय के जुलूस हिंदू बहुल इलाकों से गुजर सकते हैं, तो हिंदू समुदाय के जुलूसों को मुस्लिम बहुल इलाकों से निकलने की अनुमति क्यों नहीं दी जाती।”

विवाद का मुद्दा
धार्मिक आयोजनों के दौरान कई बार यह सवाल उठता है कि जुलूसों के मार्ग को लेकर भेदभाव क्यों किया जाता है। इस संदर्भ में समाज के कुछ वर्गों का मानना है कि सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार मिलना चाहिए।

प्रमुख बिंदु:

  1. समानता का सवाल: दोनों समुदायों को एक-दूसरे के क्षेत्रों से अपने धार्मिक जुलूस निकालने का अधिकार होना चाहिए।
  2. शांति और सौहार्द: जुलूस के दौरान सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी की होती है।

धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार
भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसके तहत सभी धर्मों के लोग अपने त्योहार और धार्मिक कार्यक्रम सामाजिक समरसता के साथ मना सकते हैं।

  • धार्मिक जुलूस निकालना हर नागरिक का अधिकार है।
  • किसी भी समुदाय के लिए भेदभावपूर्ण नियम नहीं होने चाहिए।

सामाजिक सौहार्द पर जोर
इस मुद्दे पर समाज के बुद्धिजीवियों और नेताओं का कहना है कि जुलूस निकालने का अधिकार तो सभी को है, लेकिन इसके लिए शांति और सौहार्द बनाए रखना जरूरी है।

  1. प्रशासन को समान नियम लागू करने चाहिए।
  2. सभी समुदायों को एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करना चाहिए।
  3. संवाद और सहयोग से सामाजिक एकता को मजबूत किया जा सकता है।

क्या कहता है कानून?
भारतीय कानून के अनुसार:

  • सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है।
  • धार्मिक जुलूसों को निकालने के लिए प्रशासन की अनुमति जरूरी है, ताकि कानून-व्यवस्था बनी रहे।
  • किसी भी क्षेत्र में किसी भी धर्म के जुलूस पर प्रतिबंध सिर्फ सुरक्षा कारणों से लगाया जा सकता है।

समाज की जिम्मेदारी
धार्मिक आयोजनों और जुलूसों को लेकर समाज की भूमिका अहम है:

  1. सामाजिक समरसता बनाए रखना।
  2. किसी भी प्रकार के तनाव या भेदभाव से बचना।
  3. आपसी संवाद के जरिए समस्याओं का हल निकालना।


सभी धार्मिक समुदायों को समान अधिकार प्राप्त हैं और सभी का कर्तव्य है कि वे सामाजिक सौहार्द बनाए रखें। सवाल यह नहीं कि कौन कहां से जुलूस निकाल सकता है, बल्कि यह है कि कैसे हम एक सामाजिक संतुलन और भाईचारे को बरकरार रख सकते हैं।

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