आरएसएस की मांग: ‘बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पर संयुक्त राष्ट्र (UN) दखल दे’
भूमिका
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। संघ ने अपनी मांग में स्पष्ट रूप से कहा है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन को इस गंभीर मानवाधिकार हनन में हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि बांग्लादेश में रह रहे हिंदू समुदाय को सुरक्षा और गरिमा का जीवन मिल सके। यह मांग न केवल दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों की स्थिति को दर्शाती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और मानवाधिकारों के विषय में भी एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म देती है।
बांग्लादेश में हिंदुओं की वर्तमान स्थिति
बांग्लादेश एक मुस्लिम बहुल राष्ट्र है, जहां हिंदू समुदाय लगभग 8% जनसंख्या का हिस्सा है। 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के समय हिंदुओं की संख्या लगभग 22% थी, जो अब घटकर आधे से भी कम रह गई है। इसका प्रमुख कारण वर्षों से जारी धार्मिक उत्पीड़न, सामाजिक भेदभाव, जबरन धर्मांतरण, संपत्ति हथियाने, और हिंसात्मक हमलों की बढ़ती घटनाएं हैं।
कुछ प्रमुख घटनाएं:
- दुर्गा पूजा पंडाल पर हमले – 2021 में कई पूजा पंडालों को क्षतिग्रस्त किया गया, जिसमें कई हिंदू श्रद्धालुओं की हत्या भी हुई।
- मंदिरों में तोड़फोड़ – विभिन्न जिलों में मंदिरों को निशाना बनाकर मूर्तियाँ तोड़ी गईं।
- हिंदू लड़कियों का अपहरण और जबरन निकाह – अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों को निशाना बनाना आम होता जा रहा है।
इन घटनाओं के कारण हिंदू समुदाय का पलायन लगातार जारी है, जिससे न केवल सामाजिक असंतुलन उत्पन्न हो रहा है, बल्कि यह क्षेत्रीय शांति के लिए भी खतरा बनता जा रहा है।
आरएसएस का प्रस्ताव और मंतव्य
आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की हालिया बैठक में पारित प्रस्ताव में यह स्पष्ट कहा गया कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों को राजनीतिक घटना बताकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। संघ ने कहा:
“हिंदुओं पर हो रहे ये हमले धार्मिक आधार पर किए जा रहे हैं। इसे धार्मिक असहिष्णुता मानते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों को सक्रिय होना चाहिए।”
प्रमुख बिंदु:
- यूएन को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।
- बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए।
- पीड़ितों को न्याय मिले।
- भारत सरकार को भी इस दिशा में प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए।
यह मांग उस चिंता को प्रतिबिंबित करती है जो आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर उठ रही है।
मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) का गठन ही विश्व भर में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए किया गया था। अगर किसी राष्ट्र में विशेष समुदाय के अधिकारों का निरंतर हनन होता है, तो यह संयुक्त राष्ट्र की नैतिक और विधिक जिम्मेदारी बनती है कि वह इस पर संज्ञान ले।
यूएन के हस्तक्षेप के संभावित उपाय:
- फैक्ट फाइंडिंग मिशन भेजा जा सकता है।
- बांग्लादेश सरकार से जवाब–तलब किया जा सकता है।
- यूएन रिपोर्ट में इसे उल्लिखित किया जाए।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहस कराई जा सकती है।
- सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाया जा सकता है।
यूएन की निष्क्रियता न केवल अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है, बल्कि इससे इसकी विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है।
भारत की भूमिका और कूटनीतिक पहल
भारत एक धार्मिक बहुल लोकतंत्र है और उसका पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के साथ संबंध परंपरागत रूप से संवेदनशील रहा है। बांग्लादेश के साथ भारत के ऐतिहासिक और सामाजिक संबंध गहरे हैं, और इस कारण भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वह कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से इस मुद्दे को उठाए।
भारत सरकार क्या कर सकती है?
- विदेश मंत्रालय के स्तर पर डिप्लोमैटिक प्रोटेस्ट।
- हाई कमीशन के माध्यम से दबाव।
- संयुक्त संयुक्त बयान जारी करना।
- पीड़ितों के लिए सहायता कार्यक्रम।
अतीत में भारत ने श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे देशों में हो रहे धार्मिक अत्याचारों पर आवाज उठाई है। उसी नीति को बांग्लादेश के लिए भी अपनाया जाना चाहिए।
बांग्लादेश सरकार की प्रतिक्रिया और चुनौतियाँ
बांग्लादेश सरकार ने सार्वजनिक तौर पर धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का वादा किया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और बयां करती है। स्थानीय प्रशासन की उदासीनता, राजनीतिक संरक्षण और मज़हबी कट्टरपंथी ताक़तें इस तरह की घटनाओं के पीछे सक्रिय हैं।
मुख्य चुनौतियाँ:
- मज़हबी कट्टरपंथियों का प्रभाव।
- न्यायिक प्रणाली की धीमी प्रक्रिया।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।
- अल्पसंख्यकों में भय और असुरक्षा का माहौल।
इन चुनौतियों से पार पाना बांग्लादेश सरकार के लिए न केवल जरूरी है, बल्कि उसका संवैधानिक कर्तव्य भी है।
सामाजिक और वैश्विक प्रतिक्रिया
भारत सहित कई देशों में प्रवासी बांग्लादेशी हिंदुओं ने विरोध प्रदर्शन किए हैं। सोशल मीडिया पर #SaveBangladeshiHindus ट्रेंड करता रहा है। मानवाधिकार संगठनों ने भी इस पर रिपोर्ट जारी की हैं, जैसे कि:
- ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW)
- एमनेस्टी इंटरनेशनल
- यूएस इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम कमिशन
इन संगठनों ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की बिगड़ती स्थिति पर चिंता जताई है, लेकिन अब तक कोई ठोस अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं बन पाया है।
नागरिक समाज और जागरूकता की भूमिका
इस विषय पर मीडिया, शिक्षाविदों, धार्मिक संगठनों और युवाओं को आगे आकर चर्चा करनी चाहिए। जब तक नागरिक समाज जागरूक नहीं होगा, तब तक सरकारें निष्क्रिय बनी रहेंगी।
क्या किया जा सकता है?
- सोशल मीडिया कैंपेन।
- हस्ताक्षर अभियान।
- जन प्रतिनिधियों से अपील।
- जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा उठाई गई यह मांग न केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण की बात करती है, बल्कि यह वैश्विक मानवाधिकार सिद्धांतों की परीक्षा भी है। अगर यूएन जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन ऐसी घटनाओं पर मूकदर्शक बने रहते हैं, तो इसका असर केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह दुनियाभर के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए संकट बन जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र को अब निष्क्रियता नहीं, सक्रियता दिखानी चाहिए। भारत सरकार, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, और वैश्विक नागरिक समाज को मिलकर बांग्लादेश सरकार पर नैतिक, कूटनीतिक और सामाजिक दबाव बनाना होगा ताकि हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों को वहां उनका संवैधानिक अधिकार और जीवन की सुरक्षा मिल सके।
शब्द संख्या: ~2000
लेखक: स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक
श्रेणी: अंतरराष्ट्रीय राजनीति, मानवाधिकार, सामाजिक विमर्श
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