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मणिपुर में वक्फ कानून को लेकर मैतेई पंगल समुदाय का विरोध, पारंपरिक अधिकारों की रक्षा की मांग

मणिपुर में वक्फ कानून का विरोध: मैतेई पंगल समुदाय ने जताई नाराजगी

“मणिपुर राज्य में एक बार फिर सामाजिक और धार्मिक मुद्दों को लेकर माहौल गर्म है। इस बार मामला वक्फ कानून को लेकर है, जहां राज्य के मुस्लिम समुदाय ‘मैतेई पंगल’ द्वारा वक्फ एक्ट 1995 के खिलाफ खुलकर विरोध दर्ज किया गया है। विरोध कर रहे समुदाय का कहना है कि यह कानून उनकी पारंपरिक व्यवस्था और अधिकारों पर सीधा हमला है। विरोध इतना बढ़ गया कि कुछ लोगों ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे बड़ा आंदोलन शुरू कर सकते हैं।”


क्या है वक्फ कानून और क्यों हो रहा विरोध ?

वक्फ कानून का परिचय

वक्फ एक्ट, 1995 भारत सरकार द्वारा पारित एक कानून है, जो मुस्लिम धर्म के अंतर्गत धार्मिक संपत्तियों को संरक्षित और संचालित करने के लिए बनाया गया था। इसके अंतर्गत वक्फ बोर्ड को विशेष अधिकार दिए गए हैं कि वे धार्मिक संपत्तियों का संचालन करें, चाहे वह मस्जिद हो, कब्रिस्तान या अन्य कोई वक्फ से जुड़ी संपत्ति।

मैतेई पंगल समुदाय की आपत्तियां

मणिपुर में मैतेई पंगल समुदाय का कहना है कि उनके पास पहले से ही पारंपरिक संरचनाएं हैं जो उनकी धार्मिक संपत्तियों की देखरेख करती हैं। उन्हें किसी बाहरी बोर्ड की आवश्यकता नहीं है। वक्फ कानून लागू होने से उनकी पारंपरिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप होता है और इससे उनकी धार्मिक आज़ादी प्रभावित होती है।


मणिपुर वक्फ कानून विरोध: प्रदर्शन कैसे और कहां हुआ ?

विरोध की शुरुआत

मणिपुर की राजधानी इंफाल में कई मुस्लिम संगठनों ने एकत्र होकर रैलियां निकालीं और नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने बैनर लेकर अपने विचार रखे और राज्य सरकार से तत्काल इस कानून को लागू न करने की मांग की।

प्रदर्शन में दिए गए तीखे बयान

प्रदर्शन के दौरान कुछ समूहों की तरफ से यह बयान भी दिया गया कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे ‘जिहाद’ के रास्ते पर जा सकते हैं। यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और विवादों का केंद्र बन गया।


मैतेई पंगल समुदाय की मांगें क्या हैं ?

  1. राज्य में वक्फ कानून लागू न किया जाए।
  2. स्थानीय धार्मिक संपत्तियों की देखरेख के लिए समुदाय आधारित व्यवस्था को मान्यता दी जाए।
  3. सरकार द्वारा मुस्लिम धार्मिक नेताओं और समुदाय के वरिष्ठों से विचार-विमर्श किया जाए।
  4. कानून में संशोधन कर मणिपुर को इससे बाहर रखा जाए।

कानूनी दृष्टिकोण: क्या कहता है वक्फ कानून ?

वक्फ एक्ट 1995 के अनुसार, सभी मुस्लिम धर्म-संबंधित अचल संपत्तियां वक्फ बोर्ड के अधीन मानी जाती हैं। इसका उद्देश्य उन संपत्तियों की रक्षा करना और सुनिश्चित करना है कि उनका उपयोग धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही हो।

हालांकि, कुछ राज्यों में यह देखा गया है कि स्थानीय समुदायों को इस कानून के तहत काम करने में समस्याएं होती हैं, क्योंकि उनकी पहले से स्थापित व्यवस्थाएं होती हैं।


मणिपुर सरकार की प्रतिक्रिया

मणिपुर सरकार ने अब तक इस विरोध को गंभीरता से लिया है और कहा है कि समुदाय के नेताओं से बात की जाएगी। सरकार की तरफ से अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन शांति बनाए रखने की अपील की गई है।


धार्मिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया

कुछ धार्मिक संगठनों ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है, जबकि कई अन्य लोगों ने ‘जिहाद’ जैसे शब्दों के उपयोग को अनुचित बताया है। उनका कहना है कि लोकतांत्रिक देश में विरोध का तरीका शांतिपूर्ण और कानूनी होना चाहिए।

राजनीतिक दलों का रुख

मणिपुर में विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए कहा है कि बिना संवाद के कोई भी कानून लागू करना सामाजिक असंतुलन को बढ़ावा देता है। वहीं, सत्तारूढ़ दल ने कहा है कि कानून लागू करने से पहले सभी पक्षों से विचार-विमर्श किया जाएगा।


क्या है मैतेई पंगल समुदाय का इतिहास ?

मणिपुर का मैतेई पंगल समुदाय मुस्लिम है, जिनकी पहचान अलग सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के रूप में होती है। राज्य में इनकी अच्छी-खासी आबादी है और वे लंबे समय से धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति पर नियंत्रण को लेकर सजग रहे हैं।


क्या हो सकता है आगे का रास्ता ?

  1. संवाद और सहमति की जरूरत: सरकार और समुदायों के बीच बातचीत ही एकमात्र रास्ता है जिससे यह मुद्दा शांतिपूर्वक हल हो सकता है।
  2. कानून में संभावित संशोधन: अगर स्थानीय जरूरतें अलग हैं तो सरकार कानून में बदलाव पर विचार कर सकती है।
  3. राजनीतिक इच्छाशक्ति: राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने के बजाय समाधान खोजने पर ध्यान दें।

समाधान की जरूरत

मणिपुर वक्फ कानून विरोध केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं है, यह धार्मिक स्वतंत्रता, पारंपरिक अधिकार और सांस्कृतिक पहचान का विषय भी है। यदि संवाद की प्रक्रिया समय पर शुरू होती है, तो इस संवेदनशील मुद्दे को बड़ी टकराव की स्थिति में जाने से रोका जा सकता है।

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सुनील शर्मा

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