बच्चों की तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- ‘लापता बच्चों को ढूंढ़ना सर्वोच्च प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता: बच्चों की तस्करी गंभीर संकट
"भारत में बच्चों की तस्करी एक गहरी और संवेदनशील समस्या बनती जा रही है। हाल ही में दिल्ली में नवजात बच्चों की तस्करी के एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हुआ। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य एजेंसियों को कड़े निर्देश दिए हैं।"
बच्चों की तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली से सामने आए नवजात बच्चों की अवैध बिक्री के मामले में गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने इसे ‘बहुत ही गंभीर स्थिति’ करार देते हुए कहा कि जब एक बच्चा गायब होता है, तो यह पता भी नहीं चलता कि वह कहां चला गया। खासकर लड़कियों के मामले में स्थिति और भी चिंताजनक है।
जांच अधिकारी को चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का आदेश
कोर्ट ने जांच अधिकारी को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि:
- तस्करी गिरोह के मुख्य सरगना की जल्द गिरफ्तारी की जाए।
- लापता बच्चों की तलाश प्राथमिकता पर की जाए।
- सभी आवश्यक कानूनी और तकनीकी उपाय लागू किए जाएं।
- चार सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट अदालत को सौंपी जाए।
यह निर्देश न केवल दिल्ली पुलिस बल्कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) जैसे निकायों के लिए भी एक चेतावनी हैं।
स्थिति क्यों है चिंताजनक?
भारत में हर साल हजारों बच्चे लापता होते हैं। इन बच्चों में से कई का शिकार तस्करी, बाल श्रम, यौन शोषण और अवैध अंग व्यापार जैसे अपराधों में होता है।
हाल के वर्षों में सामने आए आंकड़ों के अनुसार:
- हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता होता है।
- हर 10वां लापता बच्चा कभी नहीं मिलता।
- बालिका तस्करी के मामलों में वृद्धि हुई है।
बच्चों की तस्करी के पीछे का नेटवर्क
तस्करी गिरोह बड़े संगठनों की तरह काम करते हैं। उनके पास:
- फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले एजेंट
- अस्पतालों से नवजात बच्चों की चोरी करने वाले सदस्य
- खरीदारों से संपर्क बनाने वाले दलाल
- लॉजिस्टिक्स का प्रबंधन करने वाले व्यक्ति होते हैं।
इन नेटवर्क को पकड़ने के लिए पुलिस को न केवल जमीन पर काम करना पड़ता है, बल्कि डिजिटल निगरानी भी बढ़ानी होती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का असर
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और हस्तक्षेप से एक मजबूत संदेश गया है कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
“अगर आप यह नहीं जानते कि बच्चा कहां गया है, तो यह प्रशासन की विफलता है।”
अब इस मामले में जांच अधिकारी पर गंभीर जिम्मेदारी है कि वह चार सप्ताह के भीतर अदालती आदेशों पर ठोस कार्रवाई करे।
बच्चों की तस्करी रोकने के लिए क्या जरूरी है?
बच्चों की तस्करी जैसी समस्या को रोकने के लिए केवल कानून काफी नहीं होते, उसके लिए सामाजिक जागरूकता, सरकारी नीति और जमीनी कार्य भी आवश्यक हैं:
- स्कूलों और गांवों में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
- पुलिस को साइबर मॉनिटरिंग और खुफिया तंत्र को सशक्त बनाना होगा।
- बाल अधिकार संगठनों को बजट और संसाधनों की पूर्ति करनी चाहिए।
- हर लापता बच्चे का मामला प्राथमिकता से दर्ज किया जाना चाहिए।
मीडिया और समाज की भूमिका
मीडिया को तस्करी जैसे संवेदनशील मामलों को संवेदनशीलता और जिम्मेदारी से दिखाना चाहिए।
समाज को भी जागरूक रहना होगा, विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी झुग्गी बस्तियों में।
यदि कोई संदिग्ध गतिविधि दिखे, तो उसकी सूचना पुलिस को तुरंत दी जानी चाहिए।
आगे क्या हो सकता है?
अगर जांच टीम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार काम करती है, तो न केवल लापता बच्चों को खोजा जा सकेगा, बल्कि यह देश भर में तस्करी के नेटवर्क को तोड़ने का मौका भी बन सकता है।
