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दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC की प्रक्रिया होगी आसान, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिए निर्देश

दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC को सरल बनाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा कदम

“सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC की प्रक्रिया को ज्यादा सरल और सुविधाजनक बनाया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को स्पष्ट रूप से निर्देश दिए कि वह इस दिशा में जल्द से जल्द कदम उठाए ताकि हर नागरिक को समान रूप से डिजिटल सेवाओं का लाभ मिल सके।”


🔷 क्या है डिजिटल KYC और क्यों है यह जरूरी?

डिजिटल KYC (Know Your Customer) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बैंकों, मोबाइल नेटवर्क कंपनियों और अन्य सेवाप्रदाता संस्थानों द्वारा ग्राहकों की पहचान सत्यापित की जाती है। यह पहचान आधार कार्ड, फिंगरप्रिंट या फेस स्कैनिंग जैसी तकनीकों से की जाती है।

हालांकि, दिव्यांग व्यक्तियों के लिए यह प्रक्रिया कई बार जटिल साबित होती है, खासकर जब वे फिजिकल डिसेबिलिटी, दृष्टिहीनता या अन्य मानसिक सीमाओं से जूझ रहे हों। सुप्रीम कोर्ट ने इस असमानता को दूर करने की दिशा में पहल की है।


🔷 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्यों है अहम?

कोर्ट ने माना कि अगर डिजिटल इंडिया का सपना सभी नागरिकों के लिए समान रूप से साकार करना है, तो दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC को आसान बनाना आवश्यक है। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को दिव्यांगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नीति बनानी चाहिए।


🔷 केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

  • केंद्र सरकार को 4 हफ्तों के भीतर एक विस्तृत योजना प्रस्तुत करने को कहा गया है।
  • दिव्यांगजनों के लिए विशेष तकनीकी विकल्पों जैसे वॉइस असिस्टेंट, स्क्रीन रीडर, या ब्रेल सपोर्ट को डिजिटल KYC में जोड़े जाने की संभावना पर विचार करने का निर्देश दिया गया है।
  • संबंधित विभागों से कहा गया है कि वे मिलकर एक समावेशी समाधान विकसित करें।

🔷 डिजिटल KYC की मौजूदा चुनौतियाँ दिव्यांगों के लिए

दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC प्रक्रिया आज भी कई तरह की तकनीकी बाधाओं से जूझ रही है:

  • स्क्रीन रीडर सभी एप्लिकेशनों में कार्य नहीं करता।
  • बायोमेट्रिक सत्यापन शारीरिक अक्षमता वाले व्यक्तियों के लिए कठिन होता है।
  • कुछ मोबाइल ऐप दिव्यांगों के अनुकूल नहीं हैं।

🔷 विशेषज्ञों की राय: समावेशी डिज़ाइन की जरूरत

साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि अब वक्त आ गया है जब सरकार और तकनीकी कंपनियों को मिलकर समावेशी डिज़ाइन (inclusive design) पर काम करना चाहिए। सिर्फ डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना काफी नहीं है, उन्हें हर व्यक्ति के लिए उपयोगी भी बनाना जरूरी है।


🔷 क्या हो सकते हैं समाधान?

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित वॉइस रिकग्निशन सुविधा।
  • वीडियो KYC प्रक्रिया को सरल और स्वचालित बनाना।
  • आसान इंटरफेस, जिससे दिव्यांग व्यक्ति बिना किसी तकनीकी सहायता के भी प्रक्रिया पूरी कर सके।
  • कस्टमर केयर हेल्पलाइन जो विशेष रूप से दिव्यांगों के लिए हो।

🔷 सामाजिक संगठनों की मांग

देशभर के दिव्यांग संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। उनकी मांग है कि केंद्र सरकार न केवल नीति बनाए, बल्कि उसे जमीनी स्तर पर लागू भी करे। इसके अलावा, निजी कंपनियों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके प्लेटफॉर्म दिव्यांग अनुकूल हों।


🔷 अंतरराष्ट्रीय मानकों की ओर बढ़ता भारत

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी डिजिटल समावेशन एक बड़ी प्राथमिकता है। अमेरिका, यूके जैसे देशों में दिव्यांगों के लिए विशेष टेक्नोलॉजी मौजूद हैं। भारत अब सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के साथ उस दिशा में कदम बढ़ा रहा है।


🔷 यह कदम क्यों है सामाजिक समावेशन के लिए जरूरी?

एक लोकतांत्रिक समाज में हर व्यक्ति को समान अवसर देना जरूरी है। दिव्यांगों के लिए डिजिटल KYC को आसान बनाना एक ऐसा ही प्रयास है जो न केवल तकनीकी समानता की ओर इशारा करता है, बल्कि सामाजिक न्याय का भी प्रतीक है।

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