डीआरडीओ ने सफलतापूर्वक किया स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म का परीक्षण, भारत को मिली नई ऊंचाई
"यह सफलता दिखाती है कि भारत अब न केवल रक्षा तकनीक को विकसित कर रहा है, बल्कि उसे वास्तविक परिस्थितियों में परीक्षण भी कर रहा है। स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म आने वाले समय में भारत की रक्षा रणनीति का अभिन्न हिस्सा बन सकता है। यह कदम आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक ठोस प्रयास है, जो देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।"
डीआरडीओ ने स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म का सफल परीक्षण किया
भारत की रक्षा तकनीक में एक और नया अध्याय जुड़ गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में किया गया, जिससे भारत की खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं को नई दिशा मिलेगी।
क्या है स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म?
स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म एक उन्नत प्रणाली है जो बहुत ऊंचाई पर हवा में तैरते हुए लगातार निगरानी और संचार सेवाएं प्रदान कर सकती है। यह प्लेटफॉर्म हल्के-से-हवा वाले गैसों की मदद से उड़ता है और पृथ्वी की सतह से लगभग 17 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है।
इस प्रणाली को आगरा स्थित एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ADRDE) द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया है। इसे उपकरणीय पेलोड (instrumented payload) के साथ लॉन्च किया गया, जो विभिन्न निगरानी और डेटा संग्रहण कार्यों में सक्षम है।
परीक्षण की विशेषताएं और परिणाम
इस उड़ान का कुल समय लगभग 62 मिनट रहा। डीआरडीओ की टीम ने परीक्षण के दौरान सिस्टम को सफलतापूर्वक रिकवर भी किया। यह परीक्षण इस बात का प्रमाण है कि भारत अब उच्च ऊंचाई वाली प्लेटफॉर्म प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चुका है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस महत्वपूर्ण सफलता पर डीआरडीओ को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली से भारत की पृथ्वी अवलोकन और ISR (Intelligence, Surveillance and Reconnaissance) क्षमताएं कई गुना बढ़ जाएंगी। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह उपलब्धि भारत को उन सीमित देशों की सूची में ला देती है, जिनके पास ऐसी स्वदेशी तकनीक है।
डीआरडीओ अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत की सराहना
डीआरडीओ के अध्यक्ष और रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव डॉ. समीर वी. कामत ने भी इस प्रोजेक्ट की सफलता के लिए तकनीकी टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह परीक्षण हल्के-से-हवा वाले प्लेटफॉर्म सिस्टम की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, जो भविष्य में रणनीतिक और नागरिक दोनों उपयोगों के लिए बेहद प्रभावी साबित हो सकता है।
स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म: क्यों है यह खास?
1. लंबी अवधि तक निगरानी की क्षमता
यह एयरशिप महीनों तक हवा में बना रह सकता है, जिससे सीमाओं और रणनीतिक क्षेत्रों की सतत निगरानी संभव होती है।
2. पर्यावरण के अनुकूल तकनीक
यह प्रणाली पारंपरिक सैटेलाइट और ड्रोन की तुलना में कम लागत पर संचालन करती है और अधिक टिकाऊ है।
3. आपदा प्रबंधन और संचार सेवाएं
आपदा की स्थिति में यह प्लेटफॉर्म प्रभावित क्षेत्रों में संचार नेटवर्क को बहाल करने और निगरानी में मदद कर सकता है।
इस तकनीक का भविष्य में संभावित उपयोग
सीमावर्ती क्षेत्रों में निरंतर निगरानीसैन्य ठिकानों की सुरक्षाप्राकृतिक आपदाओं में राहत एवं बचाववन्यजीव और पर्यावरण निगरानीदूरदराज क्षेत्रों में इंटरनेट और संचार सेवाएं
भारत को क्या मिला इस सफलता से?
इस परीक्षण ने भारत को रक्षा क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम उठाने का अवसर दिया है। साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की वैज्ञानिक और रक्षा क्षमताओं का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन भी है। इससे भविष्य में भारत के अंतरिक्ष और निगरानी कार्यक्रमों को गति मिलेगी।
