क्या है विवाद?
“कांग्रेस और चुनाव आयोग के बीच तनाव तब बढ़ गया जब चुनाव आयोग ने बिहार सहित छह राज्यों में मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) शुरू करने का ऐलान किया। कांग्रेस का दावा है कि यह कवायद राज्य मशीनरी का दुरुपयोग कर मतदाताओं को बाहर करने का जरिया बन सकती है।”
कांग्रेस के मुख्य आरोप: क्या है आशंका?
कांग्रेस पार्टी के अनुसार, यह संशोधन:
- पहले से मौजूद मतदाता सूची को पूरी तरह से खत्म कर नई सूची बनाने का प्रयास है।
- चुनाव आयोग द्वारा घर-घर जाकर दस्तावेज जांचना ऐसा कदम है जिसमें गरीब और वंचित तबके के नागरिकों को बाहर किया जा सकता है।
- जन्म प्रमाण पत्र और माता-पिता के दस्तावेज की अनिवार्यता से 8.1 करोड़ मतदाताओं को परेशानी हो सकती है।
SIR प्रक्रिया: चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया:
- अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए जरूरी है।
- यह पहल बिहार से शुरू होकर असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी लागू की जाएगी।
- भारत के नागरिकों की पहचान को दुरुस्त करना आयोग की ज़िम्मेदारी है।
दस्तावेज की अनिवार्यता पर कांग्रेस की चिंता
कांग्रेस का दावा है कि बड़े पैमाने पर दस्तावेज़ मांगने से:
- बहुत से नागरिक नामांकित नहीं हो पाएंगे।
- गरीब, ग्रामीण, महिला, आदिवासी और घुमंतू जनजातियों के वोटिंग अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।
- यह कदम मतदाता सूची की शुद्धता के नाम पर निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
ईगल (EAGLE) समूह की भूमिका और विश्लेषण
EAGLE (Experts Advisory Group for Legal and Electoral Integrity) नामक कांग्रेस समर्थित विशेषज्ञ समूह ने कहा:
- “बिमारी से भी खराब इलाज” है यह संशोधन।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भरोसा टूटने का खतरा है।
- यह प्रक्रिया आधार कार्ड से लिंकिंग की पहले की नीति के उलट है, जिसे आयोग ने मार्च 2025 में प्रस्तावित किया था।
चुनावी समय और राजनीतिक संदर्भ
इस विवाद का समय भी महत्वपूर्ण है:
- बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं।
- कांग्रेस का कहना है कि यह संशोधन चुनाव से ठीक पहले इसलिए हो रहा है ताकि सरकार अपने राजनीतिक हितों के अनुसार मतदाता सूची को प्रभावित कर सके।
मतदाताओं के लिए क्या बदल जाएगा?
नए संशोधन प्रस्ताव के अनुसार:
- हर मतदाता को अपनी पहचान और पते के दस्तावेज देने होंगे।
- जिनके पास बर्थ सर्टिफिकेट या माता-पिता के दस्तावेज नहीं हैं, वे सूची से बाहर हो सकते हैं।
- प्रक्रिया में कर्मचारी स्तर पर भेदभाव की आशंका जताई जा रही है।
सवाल जो उठ रहे हैं:
क्या यह संविधान के मतदान अधिकारों का उल्लंघन है?क्या यह अवैध प्रवासियों को हटाने का बहाना है?क्या यह एकतरफा निर्णय है?
कांग्रेस की मांगें:
- गहन संशोधन की प्रक्रिया रोकने की मांग।
- चुनाव आयोग को गैर-राजनीतिक और निष्पक्ष भूमिका निभाने की अपील।
- मतदाता सूची अपडेट करने के लोकतांत्रिक और पारदर्शी तरीके की मांग।
समाप्ति विचार: लोकतंत्र में भरोसा बनाम प्रक्रिया में डर
भारत का लोकतंत्र मतदाता पर आधारित है। यदि मतदाता ही खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे कि वे सूची से हट सकते हैं, तो चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठना लाजिमी है।
“कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर मैदान में आ गए हैं। वहीं चुनाव आयोग अपनी प्रक्रिया को जरूरी और वैध मानता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मतदाता सूची का सुधार है या फिर मतदाता अधिकारों पर सवाल?“
