BRICS का विस्तार: खतरे की घंटी? जानें क्यों भारत के लिए खुल सकता है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता का रास्ता
BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का हालिया विस्तार वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण बदलावों का संकेत दे रहा है। इस समूह में नए सदस्यों के शामिल होने से भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता की संभावनाएं खुल सकती हैं, लेकिन इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी सामने आ सकती हैं।
BRICS का विस्तार
हाल ही में BRICS सम्मेलन में जिन नए सदस्यों को शामिल किया गया है, उनमें कई ऐसे देश हैं जो वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं। इस विस्तार का उद्देश्य विकासशील देशों के हितों को बढ़ावा देना और वैश्विक राजनीति में उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करना है।
भारत के लिए संभावनाएं
- वैश्विक राजनीतिक प्रभाव: BRICS का विस्तार भारत को वैश्विक मंच पर और अधिक महत्वपूर्ण बना सकता है। इससे भारत की आवाज़ को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अधिक सुना जा सकेगा।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता: BRICS के नए सदस्यों के साथ भारत की भागीदारी से UNSC में स्थायी सदस्यता की संभावना बढ़ सकती है। भारत को UNSC में शामिल करने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही है, और BRICS के साथ सहयोग इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग: BRICS का विस्तार भारत को विकासशील देशों के साथ अधिक सहयोग करने का अवसर प्रदान करता है। इससे भारत को अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
खतरे की घंटी
हालांकि, BRICS का यह विस्तार भारत के लिए खतरे की घंटी भी साबित हो सकता है:
- चीन का बढ़ता प्रभाव: BRICS में चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जो भारत के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है। चीन की नीतियों और वैश्विक स्तर पर उसके रणनीतिक लक्ष्यों के कारण भारत को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सतर्क रहना होगा।
- भविष्य के सहयोग की अनिश्चितता: नए सदस्यों के शामिल होने से BRICS के अंदर एक असंतुलन पैदा हो सकता है। इससे समूह के सदस्यों के बीच सहयोग और सामंजस्य में कमी आ सकती है, जो भारत के हितों के लिए हानिकारक हो सकता है।
- संघर्षों की संभावना: BRICS में विभिन्न देशों के राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं, जिससे अंतर्विरोध और संघर्ष की संभावना बढ़ सकती है।