प्राकृतिक

चमोली में हिमस्खलन: एक प्राकृतिक आपदा और उससे जुड़ी चुनौतियाँ

परिचय

भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में हाल ही में हुए हिमस्खलन ने एक बार फिर से प्राकृतिक आपदाओं की विभीषिका को उजागर किया है। चमोली, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, इन दिनों इस आपदा के कारण सुर्खियों में है। यह लेख हिमस्खलन के कारणों, प्रभावों, राहत और बचाव कार्यों तथा इससे बचाव के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेगा।

हिमस्खलन क्या होता है?

हिमस्खलन वह प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें बर्फ, चट्टानें और मिट्टी तेजी से नीचे की ओर खिसकती हैं। यह घटना मुख्यतः पर्वतीय क्षेत्रों में होती है, जहाँ भारी मात्रा में हिमपात और ढलानदार सतहें होती हैं। हिमस्खलन कई कारणों से हो सकता है, जिनमें मुख्यतः जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक बर्फबारी, भूकंप और मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं।

चमोली में हिमस्खलन की पृष्ठभूमि

चमोली जिले में स्थित जोशीमठ और उसके आसपास के क्षेत्र पहले से ही भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी आपदाओं से प्रभावित रहे हैं। फरवरी 2021 में यहाँ ग्लेशियर फटने से भारी तबाही हुई थी, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई थी और कई संपत्तियाँ नष्ट हो गई थीं। इस बार का हिमस्खलन भी इसी इलाके में हुआ है, जिससे वहाँ की स्थिरता को लेकर चिंताएँ और बढ़ गई हैं।

हिमस्खलन के प्रमुख कारण

  1. जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे हिमस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
  2. भूकंप और भूस्खलन: उत्तराखंड भूकंपीय क्षेत्र में आता है, जिससे यहाँ भूकंप आने की संभावना बनी रहती है। भूकंप के झटकों से बर्फ की परतें अस्थिर हो जाती हैं और हिमस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
  3. अत्यधिक बर्फबारी: जब किसी क्षेत्र में बहुत अधिक हिमपात होता है, तो बर्फ की ऊपरी परत अस्थिर हो जाती है और नीचे की ओर खिसकने लगती है।
  4. मानवीय गतिविधियाँ: अनियंत्रित निर्माण कार्य, सड़कें बनाना, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और पर्यटन गतिविधियाँ भी हिमस्खलन को बढ़ावा देती हैं।

हिमस्खलन का प्रभाव

  1. मृत्यु और जनहानि: इस आपदा में कई लोगों की जान चली जाती है, विशेषकर वे जो इस क्षेत्र में काम करने या यात्रा करने के लिए मौजूद होते हैं।
  2. आर्थिक क्षति: घर, सड़कें, पुल, और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट जैसे बुनियादी ढाँचे नष्ट हो जाते हैं, जिससे भारी आर्थिक नुकसान होता है।
  3. पर्यावरणीय नुकसान: हिमस्खलन के कारण जंगलों और वनस्पतियों को भी नुकसान पहुँचता है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
  4. आवागमन में बाधा: सड़कें और रास्ते बंद हो जाते हैं, जिससे लोगों की आवाजाही रुक जाती है और राहत कार्यों में भी देरी होती है।
  5. जल स्रोतों पर असर: ग्लेशियरों के पिघलने से जल स्रोतों पर असर पड़ता है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो सकता है।

राहत एवं बचाव कार्य

  1. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की तैनाती: जैसे ही हिमस्खलन की सूचना मिली, सरकार ने तुरंत NDRF और अन्य बचाव एजेंसियों को भेजा।
  2. स्थानीय प्रशासन की भूमिका: पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने तुरंत राहत कार्य शुरू किया और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया।
  3. हवाई बचाव अभियान: वायुसेना और हेलिकॉप्टर की सहायता से प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री पहुँचाई गई और घायलों को निकाला गया।
  4. स्वास्थ्य सेवाएँ: घायलों को इलाज के लिए अस्पतालों में भर्ती कराया गया और मेडिकल टीमें तैनात की गईं।
  5. स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी: कई गैर-सरकारी संगठनों (NGO) ने भी इस बचाव अभियान में अपना योगदान दिया।

हिमस्खलन से बचाव के उपाय

  1. प्राकृतिक चेतावनी प्रणाली: आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके हिमस्खलन की भविष्यवाणी करने और लोगों को सतर्क करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
  2. संरचनात्मक उपाय: हिमस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में मजबूत संरचनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे जान-माल की क्षति कम हो।
  3. वनों का संरक्षण: पेड़ों की कटाई को रोककर और अधिक वृक्षारोपण करके भूमि को स्थिर किया जा सकता है।
  4. स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण: स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण देकर उन्हें सतर्क और जागरूक बनाया जाना चाहिए।
  5. मानवीय गतिविधियों पर नियंत्रण: अनियंत्रित निर्माण कार्यों को रोककर और सतत विकास की नीति अपनाकर हिमस्खलन की घटनाओं को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष

चमोली में हुआ हिमस्खलन एक गंभीर प्राकृतिक आपदा है, जिससे न केवल जनहानि हुई बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान भी हुआ है। इस प्रकार की आपदाओं से बचने के लिए सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और स्थानीय प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। सतत विकास की नीतियाँ अपनाने, पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने और आपदा प्रबंधन में सुधार करने से इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सकता है।

भविष्य में, हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना होगा ताकि इस प्रकार की आपदाओं को रोका जा सके और एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

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