मध्य पूर्व में तनाव से कच्चे तेल की कीमतों में उबाल, वैश्विक बाजार में तेजी
"कच्चे तेल की कीमतों में उबाल एक बार फिर देखने को मिल रहा है। इसके पीछे वजह है मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव, जिसने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार को हिला कर रख दिया है। सोमवार को ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.93% बढ़कर 74.92 डॉलर प्रति बैरल और WTI क्रूड 1.16% बढ़कर 73.83 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई।"
13 जून की एयर स्ट्राइक से भड़का बाजार
तेल बाजार में उथल-पुथल की शुरुआत 13 जून को हुई जब इजरायल ने ईरान पर एयर स्ट्राइक की। इसके बाद से कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 7% की बढ़ोतरी देखी गई है।
- 12 जून:
- ब्रेंट क्रूड – $69.36
- WTI क्रूड – $66.64
- 17 जून:
- ब्रेंट क्रूड – $74.92
- WTI क्रूड – $73.83
इजरायल की एयर स्ट्राइक का मुख्य निशाना ईरान का साउथ पारस गैस फील्ड था, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ और आपूर्ति पर असर पड़ा।
क्या कीमतें और बढ़ेंगी? विशेषज्ञों की राय
हालांकि बाजार में तेजी है, लेकिन विश्लेषक अतिरिक्त वृद्धि की संभावना को लेकर सतर्क हैं। जूलियस बेयर के प्रमुख विश्लेषक नॉर्बर्ट रकर के अनुसार:
"जब तक होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने की कोशिश नहीं होती या हौथी आतंकवादियों द्वारा तेल जहाजों पर हमला नहीं होता, तब तक कीमतों में और उछाल की संभावना कम है।"
तेल बाजार हमेशा से भू-राजनीतिक घटनाओं के प्रति संवेदनशील रहा है, और इजरायल-ईरान तनाव इसका ताजा उदाहरण है।
ईरान की भूमिका और उत्पादन आंकड़े
एमके ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान:
- दैनिक उत्पादन: 3.3 मिलियन बैरल (MBPD)
- दैनिक निर्यात: 1.5 मिलियन बैरल
- निर्यात का 80% हिस्सा: चीन को
ईरान का उत्पादन वैश्विक तेल आपूर्ति में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखता है। यदि संघर्ष बढ़ता है और निर्यात में रुकावट आती है, तो इससे वैश्विक तेल आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ सकता है।
होर्मुज स्ट्रेट: विश्व ऊर्जा सुरक्षा का सबसे संवेदनशील चोक पॉइंट
ईरान का सामरिक महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि वह होर्मुज स्ट्रेट के उत्तरी छोर पर स्थित है। इस जलडमरूमध्य से प्रतिदिन 20 मिलियन बैरल से अधिक कच्चे तेल का वैश्विक व्यापार होता है।
- सऊदी अरब, UAE जैसे देशों की तेल निर्यात की निर्भरता भी इसी मार्ग पर है।
- ईरान पहले भी इस मार्ग को बंद करने की धमकी दे चुका है, जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ जाती है।
संघर्ष का संभावित वैश्विक प्रभाव
ऊर्जा कीमतों पर असर:
तेल के दाम बढ़ने से पेट्रोल-डीजल समेत अन्य ऊर्जा उत्पाद महंगे हो सकते हैं।
महंगाई पर प्रभाव:
भारत जैसे आयात-निर्भर देशों में महंगाई दर बढ़ सकती है, जिससे आम आदमी पर असर होगा।
फॉरेक्स रिजर्व पर दबाव:
कच्चे तेल की ऊंची कीमतें विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित कर सकती हैं।
भारत की आर्थिक नीति पर दबाव:
सरकार को तेल सब्सिडी, GST कलेक्शन, और वित्तीय घाटा जैसे पहलुओं पर फिर से विचार करना पड़ सकता है।
अमेरिका, ईरान और इजरायल का त्रिकोण
विश्लेषकों के अनुसार, इजरायल की यह कार्रवाई तब आई जब:
- अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते को लेकर बातचीत विफल रही।
- ईरान ने धमकी दी थी कि अगर हमला हुआ तो वह इराक और अन्य देशों में अमेरिकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई करेगा।
यह स्थिति भविष्य में बड़े संघर्ष की संभावना की ओर भी इशारा कर रही है।
क्या भारत को चिंता करनी चाहिए?
भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 85% आयात करता है, और इसमें बड़ी हिस्सेदारी मध्य पूर्व से आती है।
संभावित असर:
- घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि
- रुपये की कमजोरी
- व्यापार घाटे में इजाफा
- तेल कंपनियों पर लागत का दबाव
"कच्चे तेल की कीमतों में उबाल केवल बाजार संकेतक नहीं है, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव का प्रभाव भी दर्शाता है। भारत समेत तमाम आयात-निर्भर देशों के लिए यह समय सतर्क रहने और ऊर्जा सुरक्षा रणनीतियों को मजबूत करने का है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि संघर्ष किधर रुख करता है और इसका कितना गहरा प्रभाव वैश्विक ऊर्जा बाजार पर पड़ता है।"
