छत्तीसगढ़ में हाथ से लिखा बजट पेश: ऐतिहासिक कदम या परंपरा की पुनर्स्थापना?
परिचय
छत्तीसगढ़ सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए हाथ से लिखा बजट पेश किया, जो भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जा रहा है। जब तकनीक और डिजिटलीकरण का युग अपने चरम पर है, तब सरकार द्वारा इस प्रकार का कदम उठाना चर्चा का विषय बन गया है। यह न केवल परंपरा का सम्मान करता है बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
हाथ से लिखे बजट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में बजट पेश करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है, लेकिन आधुनिक युग में यह प्रक्रिया डिजिटल हो गई है। पहले, बजट दस्तावेज हाथ से लिखे जाते थे और फिर उन्हें मुद्रित कर वितरित किया जाता था।
कुछ ऐतिहासिक संदर्भ:
- स्वतंत्रता के बाद, भारत के पहले बजट दस्तावेज भी हाथ से लिखे गए थे।
- 1950 से पहले, ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में भी बजट दस्तावेज हाथ से तैयार किए जाते थे।
- कई राज्यों में 1990 के दशक तक हाथ से लिखे बजट पेश करने की परंपरा रही है, लेकिन बाद में डिजिटल तरीकों को अपनाया गया।
छत्तीसगढ़ ने इस परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए एक अनूठा कदम उठाया है। यह बजट पूरी तरह से हाथ से लिखा हुआ था, जिसे वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी ने विधानसभा में पेश किया।
बजट के प्रमुख बिंदु
इस बजट में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के लिए आवंटित धनराशि और योजनाओं का उल्लेख किया गया।
मुख्य आवंटन:
- शिक्षा क्षेत्र: 18,000 करोड़ रुपये
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण: 14,500 करोड़ रुपये
- कृषि एवं ग्रामीण विकास: 20,000 करोड़ रुपये
- बुनियादी ढांचा एवं सड़क निर्माण: 22,000 करोड़ रुपये
- पर्यावरण संरक्षण: 5,000 करोड़ रुपये
- महिला एवं बाल विकास: 7,500 करोड़ रुपये
बजट पेश करने की प्रक्रिया और अनोखापन
वित्त मंत्री द्वारा हाथ से लिखे बजट को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया पारंपरिक थी।
- बजट दस्तावेज को हाथ से लिखा गया, बिना किसी कंप्यूटर या डिजिटल प्रिंटिंग के।
- यह दस्तावेज वित्त विभाग के अधिकारियों और विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा तैयार किया गया।
- बजट पृष्ठों को सजावटी डिजाइनों से सुसज्जित किया गया था, जिसमें पारंपरिक छत्तीसगढ़ी कला का समावेश था।
- यह बजट राज्य की सांस्कृतिक विरासत और प्रशासनिक ईमानदारी का प्रतीक माना गया।
हाथ से लिखे बजट के फायदे
- संस्कृति और परंपरा का सम्मान: यह बजट छत्तीसगढ़ की पारंपरिक प्रशासनिक शैली को फिर से जीवंत करता है।
- निजीकरण और मानवीय जुड़ाव: हाथ से लिखे बजट को पढ़ने और समझने में एक विशेष आकर्षण और संवेदनशीलता होती है।
- आधिकारिक पारदर्शिता: डिजिटल युग में साइबर सुरक्षा और डेटा लीक जैसी समस्याओं से बचाव का एक तरीका हो सकता है।
- स्थानीय कला और हस्तलिपि का प्रोत्साहन: यह उन कलाकारों और लेखकों को प्रोत्साहित कर सकता है जो हस्तलिपि और शिल्पकारी में निपुण हैं।
- प्रभावी संचार: डिजिटल बजट के बजाय हाथ से लिखे बजट को पढ़कर सदन में चर्चा को अधिक गंभीरता से लिया गया।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हालाँकि यह पहल अनोखी और ऐतिहासिक थी, लेकिन इसके कुछ आलोचक भी रहे।
- समय और श्रम की अधिकता: एक डिजिटल बजट की तुलना में हाथ से लिखे बजट को तैयार करने में अधिक समय और श्रम लगता है।
- मानवीय त्रुटियाँ: टाइप किए गए बजट की तुलना में, हाथ से लिखे दस्तावेज़ में गलती की संभावना अधिक होती है।
- आधुनिक तकनीक से दूरी: कुछ लोगों का मानना है कि यह निर्णय छत्तीसगढ़ को आधुनिक प्रशासनिक प्रणाली से पीछे धकेल सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: डिजिटल बजट कागज की बचत करता है, जबकि हाथ से लिखे बजट में कागज की खपत अधिक होती है।
- पढ़ने में कठिनाई: कुछ सदस्यों ने शिकायत की कि हस्तलिखित दस्तावेज पढ़ने में कठिनाई हो सकती है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
छत्तीसगढ़ विधानसभा में बजट पेश करने के बाद विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों की प्रतिक्रियाएँ मिली-जुली रहीं।
- सत्ताधारी दल का समर्थन: मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल ने इस पहल की सराहना की और इसे ‘छत्तीसगढ़ की आत्मा से जुड़ा एक निर्णय’ बताया।
- विपक्ष की आलोचना: विपक्ष ने इसे एक ‘लोकलुभावन कदम’ बताते हुए कहा कि इससे प्रशासन में कोई ठोस सुधार नहीं होगा।
- जनता की राय: सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर इस मुद्दे को लेकर जनता की प्रतिक्रियाएँ बंटी रहीं। कुछ लोगों ने इसे एक अच्छी पहल बताया तो कुछ ने इसे समय की बर्बादी कहा।
आर्थिक विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण से इसे अपनाना मुश्किल हो सकता है।
- परंपरा और आधुनिकता का संतुलन आवश्यक: विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को परंपरा का सम्मान करते हुए आधुनिक तकनीक को भी अपनाना चाहिए।
- डेटा मैनेजमेंट और रिकॉर्ड की समस्या: डिजिटल बजट की तुलना में हाथ से लिखे दस्तावेजों को संभालना कठिन होता है।
- अन्य राज्यों को प्रेरित करेगा या नहीं?: यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अन्य राज्य भी इस परंपरा को अपनाने की कोशिश करेंगे।
आगे की राह
छत्तीसगढ़ सरकार ने संकेत दिया है कि भविष्य में भी इस प्रकार की पारंपरिक व्यवस्थाओं को बढ़ावा दिया जाएगा। हालाँकि, यह देखना बाकी है कि क्या सरकार डिजिटल और पारंपरिक बजट दोनों को संतुलित तरीके से अपनाने की दिशा में आगे बढ़ेगी।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में हाथ से लिखा बजट पेश करना एक ऐतिहासिक और अनूठी पहल थी, जिसने प्रशासनिक प्रणाली में परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को उजागर किया। यह पहल न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत में चर्चा का विषय बन गई।
हालाँकि, डिजिटल युग में इस प्रकार के कदम को व्यावहारिक रूप से लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह कदम एक सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण रहेगा। अब देखना होगा कि क्या अन्य राज्य भी इसी परंपरा को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, या यह केवल एक बार की अनूठी घटना बनकर रह जाएगी।