हिंदू कॉलेज में ECA और खेल कोटे की सीटों पर विवाद, हाई कोर्ट ने मांगा विस्तृत ब्योरा
हिंदू कॉलेज खेल कोटा विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट सख्त, मांगा आरक्षित सीटों का ब्योरा
“नई दिल्ली — दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज में ECA (Extracurricular Activities) और खेल कोटे के तहत सीटों के आवंटन को लेकर विवाद गहरा हो गया है। कॉलेज प्रशासन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर विचार करते समय दिल्ली हाई कोर्ट ने 2025-26 शैक्षणिक सत्र के लिए आरक्षित सीटों का पूरा ब्योरा कॉलेज प्रशासन से मांगा है याचिका एक लाॅन टेनिस खिलाड़ी की ओर से दायर की गई है, जिसमें आरोप है कि कॉलेज ने दिल्ली विश्वविद्यालय की खेल और ECA कोटा नीति का पालन नहीं किया।।”
मामला क्या है?
याचिकाकर्ता रावत, जो
CBSE नेशनल्स के गोल्ड मेडलिस्ट हैं, ने आरोप लगाया कि हिंदू कॉलेज ने:
- खेल कोटे के तहत तीन ही खेलों — बास्केटबॉल, क्रिकेट और फुटबॉल — को ही मिलाया।
- लाॅन टेनिस जैसे बाकी के खेलों की अनदेखी की गई।
- विश्वविद्यालय के अनुसार, कॉलेज में कुल सीटों का कम से कम 5% खेल व ECA कोटे के लिए आरक्षित होना चाहिए।
कॉलेज ने हालांकि केवल
20 सीटें (
10 खेल और
10 ECA) ही आरक्षित की, जबकि याचिकाकर्ता के मुताबिक कम से कम
47 सीटें आरक्षित की जानी चाहिए थीं।
कोर्ट का रुख
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति विकास महाजन की बेंच ने की। कोर्ट ने:
- याचिका पर आखिरी आदेश तक एक सीट आरक्षित रखने का आदेश दिया।
- हिंदू कॉलेज से सभी आरक्षित सीटों की विस्तृत जानकारी पेश करने का आदेश दिया।
यह भी स्पष्ट किया कि खेल कोटे की नीति में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना कॉलेज का कर्तव्य है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी की कोटा नीति क्या कहती है?
दिल्ली विश्वविद्यालय की एडमिशन नीति के अनुसार:
- याचिका पर आखिरी आदेश तक एक सीट आरक्षित रखने का आदेश दिया।
- हिंदू कॉलेज से सभी आरक्षित सीटों की विस्तृत जानकारी पेश करने का आदेश दिया।
खेल कोटे में विभिन्न खेलों को शामिल किया जाना चाहिए, न कि सिर्फ कुछ महत्वपूर्ण खेलों को।
याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें
याचिकाकर्ता के ओर से अधिवक्ता जीतेन्द्र गुप्ता ने कोर्ट में दलील दी कि:
- याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
- फिर भी हिंदू कॉलेज के प्रोस्पेक्टस में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन नहीं हुआ।
इस तरह की अनदेखी से योग्य खिलाड़ियों को प्रवेश से वंचित होना पड़ रहा है।
क्यों है यह मामला अहम?
यह मामला एक ही विद्यार्थी की याचिका नहीं, बल्कि उच्च शिक्षण संस्थानों में कोटा नीति के पारदर्शी क्रियान्वयन का सवाल। यदि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसा प्रतिष्ठित संस्थान ही खेल और सांस्कृतिक प्रतिभाओं की उपेक्षा करता है, तो यह शिक्षा प्रणाली की समावेशी सोच पर प्रश्नचिह्न है।
इससे पहले भी उठ चुके हैं ऐसे सवाल
- पिछले वर्षों में भी कुछ कॉलेजों पर खेल और ECA कोटा के नाम पर मनमर्जी करने के आरोप लगे हैं।
- कुछ मामलों में खिलाड़ियों को ट्रायल की सूचना तक नहीं दी गई।
- अनेक बार यह कोटा सिर्फ दिखावे के लिए इस्तेमाल होता रहा है।
समाधान की दिशा में क्या हो सकता है?
स्पष्ट और सार्वजनिक दिशा-निर्देश
हर कॉलेज को अपनी कोटा नीति वेबसाइट पर प्रकाशित करनी चाहिए।
खेलों की व्यापक सूची
केवल लोकप्रिय खेल नहीं, बल्कि लॉन टेनिस, तीरंदाजी, तैराकी, एथलेटिक्स जैसे खेल भी शामिल किए जाएं।
पारदर्शी ट्रायल प्रणाली
ऑनलाइन फॉर्म, ट्रायल शेड्यूल और मार्किंग स्कीम पारदर्शिता से जारी होनी चाहिए।
निगरानी निकाय
दिल्ली विश्वविद्यालय एक कोटा मॉनिटरिंग कमेटी बना सकता है जो कोटे के सही क्रियान्वयन की निगरानी करे।
“हिंदू कॉलेज खेल कोटा विवाद बस एक कानूनी मामला नहीं, लेकिन शिक्षा और प्रतिभा के समावेश की दिशा की ओर एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। यदि प्रतिभाशाली खिलाड़ी और कलाकार संस्थानों की नीतिगत अनदेखी का शिकार होंगे, तो “शिक्षा में समान अवसर” की कल्पना अधूरी रह जाएगी। कोर्ट की सख्ती उम्मीद की किरण बन सकती है — यदि इसपर गंभीरता से अमल किया जाए।”