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सिंधु जल समझौते की समीक्षा के लिए केंद्र सरकार की बड़ी बैठक, अमित शाह ने की अध्यक्षता

"सिंधु जल संधि पर भारत की यह उच्चस्तरीय बैठक इस बात का संकेत है कि देश अपने जल संसाधनों के प्रबंधन और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को गंभीरता से ले रहा है। भविष्य में संधि के किसी भी परिवर्तन या निलंबन से पहले व्यापक विचार-विमर्श और कूटनीतिक प्रयास किए जाएंगे, ताकि भारत के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।"

सिंधु जल संधि पर भारत की रणनीति: अमित शाह की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक

भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि पर हाल ही में भारत सरकार ने पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है। इस संदर्भ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई, जिसमें जल शक्ति मंत्री और अन्य वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री शामिल हुए। बैठक का मुख्य उद्देश्य संधि की वर्तमान स्थिति, इसके प्रभाव और भविष्य की रणनीति पर चर्चा करना था।


सिंधु जल संधि: एक परिचय

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल वितरण को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसे 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया गया था। इस संधि के तहत, भारत को पूर्वी नदियों (रावी, व्यास, सतलुज) का नियंत्रण प्राप्त है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का अधिकार दिया गया है। संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच जल संसाधनों का शांतिपूर्ण और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना था।​


बैठक के प्रमुख बिंदु

1. संधि की समीक्षा

बैठक में संधि की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की गई, जिसमें इसके विभिन्न प्रावधानों और उनके पालन की स्थिति पर चर्चा हुई। विशेष रूप से, भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण और पाकिस्तान की आपत्तियों पर विचार किया गया।​

2. राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव

संधि के प्रावधानों का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव भी बैठक में एक महत्वपूर्ण विषय रहा। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के समर्थन और सीमा पार हमलों के संदर्भ में संधि की समीक्षा आवश्यक है।​

3. अंतर्राष्ट्रीय दबाव और कूटनीति

बैठक में यह भी चर्चा हुई कि संधि के किसी भी परिवर्तन या निलंबन से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की छवि पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसलिए, किसी भी निर्णय को लेने से पहले व्यापक कूटनीतिक विचार-विमर्श की आवश्यकता पर बल दिया गया।​


भविष्य की रणनीति

बैठक में यह निर्णय लिया गया कि संधि के भविष्य पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी संबंधित पक्षों से परामर्श किया जाएगा। इसके अलावा, जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए वैकल्पिक उपायों और नई परियोजनाओं पर भी विचार किया जाएगा।

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