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ईरान के परमाणु इंफ्रास्ट्रक्चर पर सीधा हमला

“पश्चिम एशिया में तनाव एक बार फिर से चरम पर पहुंच गया है। इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु संयंत्रों पर किए गए हमलों में कम से कम 14 परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो गई है। ये हमले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गंभीर नुकसान पहुंचाने की मंशा से किए गए थे। इजरायल के फ्रांस में राजदूत जोशुआ जार्का के अनुसार, यह हमला ईरान के हथियार निर्माण की क्षमता को असंभव बना सकता है। हालांकि, कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला ईरान के कार्यक्रम को कुछ समय के लिए पीछे जरूर धकेलेगा, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता।”


कौन थे ये वैज्ञानिक, और क्यों थे महत्वपूर्ण?

मारे गए वैज्ञानिकों में भौतिकी, रसायन विज्ञान, परमाणु सामग्री और विस्फोटक विशेषज्ञ शामिल थे। इन सभी का ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में दशकों का अनुभव था। यह माना जा रहा है कि इनकी मौत से ईरान की परमाणु क्षमताओं पर तत्काल प्रभाव जरूर पड़ेगा।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान के पास अभी भी कई ऐसे वैज्ञानिक हैं जो उनकी जगह ले सकते हैं, जिससे कार्यक्रम को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता।


हमले की टाइमलाइन: 13 जून को हुआ पहला बड़ा हमला

इजरायल की सेना के अनुसार, 13 जून को हुए पहले हमले में ही 9 वैज्ञानिकों की हत्या हुई थी। इसके बाद अन्य ऑपरेशन में 5 और वैज्ञानिक मारे गए। माना जा रहा है कि हमले बेहद सटीक और सुनियोजित थे, जिन्हें खुफिया जानकारी के आधार पर अंजाम दिया गया।


ट्रंप की भूमिका: ’12 डे वॉर’ की पटकथा

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर इजरायली हमलों के बाद खुद सीधा सैन्य हस्तक्षेप किया और ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी करवाईट्रंप ने इस पूरे संघर्ष को 12 Day War नाम दिया और अचानक युद्धविराम की घोषणा भी कर दी।

हालांकि, यह युद्धविराम केवल कागज़ों तक ही सीमित रहा। इसके बाद भी इजरायल और ईरान के बीच रुक-रुक कर हमले जारी रहे हैं।


क्या ट्रंप की नीति सफल हुई या स्थिति और बिगड़ी?

ट्रंप की आक्रामक विदेश नीति से जहां अमेरिका फिलहाल खुद को युद्ध में उलझा नहीं मान रहा है, वहीं विश्लेषकों का कहना है कि इसने स्थायी कूटनीतिक समाधान की संभावनाएं कमजोर कर दी हैं ईरान की राजनीतिक स्थिति भी कमजोर हो सकती है, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता और बढ़ेगी

पूर्व राष्ट्रपतियों की नीति अलग थी

ट्रंप से पहले अमेरिकी राष्ट्रपतियों — बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और जो बाइडन — सभी ने ईरान पर सैन्य कार्रवाई से बचने की नीति अपनाई थी, ताकि अमेरिका अनावश्यक रूप से पश्चिम एशिया में युद्ध में ना उलझे।

हमले का प्रभाव –

विषयविवरण
मारे गए वैज्ञानिक14 (9 पहले हमले में, 5 बाद में)
हमला कब हुआ13 जून से शुरू
उद्देश्यपरमाणु कार्यक्रम को बाधित करना
इजरायल का दावाबचे हुए ढांचे से हथियार बनाना असंभव
विशेषज्ञों की रायकार्यक्रम थमेगा, लेकिन खत्म नहीं होगा
अमेरिका की भूमिकाट्रंप द्वारा हस्तक्षेप, बमबारी और युद्धविराम
परिणामक्षेत्रीय तनाव बढ़ा, समाधान की संभावना कम हुई

कहां जा रहा है पश्चिम एशिया?

इजरायल ईरान परमाणु वैज्ञानिक हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि पश्चिम एशिया की राजनीति आज भी धधकती चिंगारी है। जहां इजरायल अपनी सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए कठोर कदम उठा रहा है, वहीं ईरान पीछे हटने के मूड में नहीं दिखता।

“डोनाल्ड ट्रंप की ’12 डे वॉर’ नीति ने अस्थायी समाधान तो दिया, लेकिन स्थायी शांति की संभावनाओं को कमजोर कर दिया है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि विश्व समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ, इस संकट को कूटनीति से सुलझाने में कितना सफल होता है।”

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