जम्मू-कश्मीर उपराज्यपाल को विधानसभा में 5 सदस्य नामित करने का विवेकाधीन अधिकार: गृह मंत्रालय
गृह मंत्रालय का रुख स्पष्ट
“केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का विवेकाधीन अधिकार है। यह अधिकार वे मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 15, 15-ए और 15-बी के तहत लागू किया गया है। इसका उद्देश्य कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों और विस्थापित समूहों को विधायी प्रक्रिया में शामिल करना है, ताकि विधानसभा में समावेशिता सुनिश्चित हो सके।”
कांग्रेस की याचिका और कानूनी चुनौती
गृह मंत्रालय का यह हलफनामा जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व विधान परिषद सदस्य रविंदर शर्मा की याचिका के जवाब में दायर किया गया।
- शर्मा ने अधिनियम की इन धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।
- उनका तर्क था कि यह प्रावधान किसी अल्पमत सरकार को बहुमत में बदलने या इसके उलट करने की क्षमता रखता है।
- उन्होंने अदालत से मांग की थी कि उपराज्यपाल को इन नामांकनों से रोका जाए।
समावेशिता और प्रतिनिधित्व पर जोर
गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि इन धाराओं का उद्देश्य ऐसे समूहों को प्रतिनिधित्व देना है, जिनकी विधानसभा में कोई आवाज नहीं है।
- इसमें महिलाएं,
- पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (PoJK) से विस्थापित लोग,
- और अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले समुदाय शामिल हैं।
गृह मंत्रालय के मुताबिक, PoJK से विस्थापित लोगों में से वर्तमान विधानसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं है, इसलिए यह प्रावधान आवश्यक है।
उपराज्यपाल की भूमिका और अधिकार
हलफनामे में यह भी स्पष्ट किया गया कि उपराज्यपाल एक वैधानिक पदाधिकारी के रूप में अपने विवेक से कार्य करते हैं, न कि केवल राज्य सरकार के विस्तार के रूप में। केंद्र ने उपराज्यपाल की इस भूमिका को दिल्ली और पुडुचेरी के शासन मॉडल से तुलना करते हुए कहा कि वहां भी कुछ मामलों में LG अपने विवेक से फैसले लेते हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
गृह मंत्रालय के इस रुख पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं।
पीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत बताया। उन्होंने कहा:
“यह लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है और एक खतरनाक मिसाल बन सकती है।”
महबूबा मुफ्ती ने उमर अब्दुल्ला से इस प्रावधान को चुनौती देने की अपील की और चेतावनी दी कि अभी की चुप्पी भविष्य में मिलीभगत मानी जाएगी।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का संदर्भ
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया था। इसके बाद कई संवैधानिक प्रावधानों और नियमों में बदलाव किया गया, जिनमें विधानसभा में नामांकन की प्रक्रिया भी शामिल है। धारा 15, 15-ए और 15-बी में उपराज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वे कुछ सदस्यों को विशेष प्रतिनिधित्व के लिए नामित कर सकें, खासकर उन समूहों से जिनकी जनसंख्या तो है, लेकिन उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं।
प्रतिनिधित्व बनाम राजनीतिक संतुलन
विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रावधान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सकारात्मक कदम है, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से इसका इस्तेमाल बहुमत संतुलन को प्रभावित करने के लिए भी किया जा सकता है।
- समर्थकों का तर्क है कि यह वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने का तरीका है।
- विरोधियों का कहना है कि इससे लोकतांत्रिक ढांचे में हस्तक्षेप हो सकता है।
आगे की कानूनी प्रक्रिया
चूंकि इस प्रावधान को लेकर अदालत में चुनौती दी गई है, इसलिए उच्च न्यायालय के फैसले पर सबकी नजरें होंगी। अगर अदालत गृह मंत्रालय के रुख को सही ठहराती है, तो उपराज्यपाल को इस अधिकार के इस्तेमाल में कोई बाधा नहीं होगी।
“जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल को विधानसभा में पांच सदस्य नामित करने का विवेकाधीन अधिकार मिलने से राजनीतिक और संवैधानिक बहस तेज हो गई है। एक तरफ यह कदम कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों के हित में बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप मान रहा है। आने वाले समय में अदालत का फैसला यह तय करेगा कि इस प्रावधान का भविष्य क्या होगा।”
