लद्दाख आधिकारिक भाषा विनियमन 2025 लागू: राष्ट्रपति मुर्मु का ऐतिहासिक निर्णय
"भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने लद्दाख आधिकारिक भाषा विनियमन 2025 को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया है। यह फैसला लद्दाख जैसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण केंद्र शासित प्रदेश में भाषाई समावेशन और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।"
अब लद्दाख में पांच आधिकारिक भाषाएं होंगी
विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा मंगलवार को अधिसूचना जारी कर दी गई। इस विनियमन के अंतर्गत निम्नलिखित पाँच भाषाओं को लद्दाख के प्रशासनिक एवं शासकीय कार्यों में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई है:
- हिंदी
- अंग्रेजी
- उर्दू
- भोटी (लद्दाखी बोली)
- पुरगी
पहले केवल अंग्रेजी का होता था उपयोग
इस विनियमन के लागू होने से पूर्व, लद्दाख में ज्यादातर आधिकारिक दस्तावेज और संवाद अंग्रेजी में ही होते थे। इससे स्थानीय समुदायों को प्रशासन से जुड़ने में कठिनाई होती थी, खासकर उन लोगों को जो अंग्रेजी में दक्ष नहीं हैं।
नई व्यवस्था से स्थानीय लोगों को मिलेगा लाभ
अब स्थानीय भाषाओं को आधिकारिक दर्जा मिलने से न केवल प्रशासनिक पहुंच आसान होगी, बल्कि संस्कृति और भाषाई विरासत को भी बढ़ावा मिलेगा।
स्थानीय प्रतिनिधियों और समुदायों की पुरानी मांग हुई पूरी
लद्दाख के सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों की यह लंबे समय से मांग रही थी कि क्षेत्र की मूल भाषाओं को प्रशासनिक मान्यता मिले। राष्ट्रपति मुर्मु का यह कदम इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है।
भाषा विविधता को मिलेगा संवैधानिक संरक्षण
इस निर्णय से सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा मिलेगा और संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा भी सुनिश्चित होगी।
प्रशासनिक कार्यों में आएगी पारदर्शिता
भाषाओं की समावेशिता से सरकारी योजनाओं की जानकारी आम नागरिकों तक सरल भाषा में पहुंचेगी। इससे नीति-निर्माण, जन-संपर्क और सूचना के आदान-प्रदान में पारदर्शिता और प्रभावशीलता आएगी।
राष्ट्रीय एकता और स्थानीय पहचान के बीच संतुलन
यह विनियमन राष्ट्रीय एकता और स्थानीय पहचान के बीच एक संतुलित पुल बनाता है। जहां हिंदी और अंग्रेजी जैसे व्यापक उपयोग वाली भाषाएं मौजूद रहेंगी, वहीं भोटी, उर्दू और पुरगी जैसी क्षेत्रीय भाषाएं स्थानीय प्रशासन और सामाजिक जुड़ाव को सशक्त करेंगी।
"लद्दाख आधिकारिक भाषा विनियमन 2025 के लागू होने से लद्दाख के निवासियों को भाषाई न्याय मिलेगा। यह एक ऐतिहासिक कदम है जो शासन में सहभागिता और समावेशन को बढ़ावा देगा।"