आरएसएस की बैठक: एक संगठनात्मक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
प्रस्तावना:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की बैठकें केवल संगठन के कार्यकर्ताओं की नियमित योजनाओं की समीक्षा का माध्यम भर नहीं होतीं, बल्कि वे भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक धारा को समझने और दिशा देने का भी एक प्रमुख स्रोत होती हैं। वर्ष 2025 में बेंगलुरु के चन्ननहल्ली स्थित जनसेवा विद्या केंद्र में संपन्न हुई तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) की बैठक संघ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के सामाजिक विमर्श के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
संघ की पृष्ठभूमि और उद्देश्य:
1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित आरएसएस एक सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन है, जिसका प्रमुख उद्देश्य भारत के नागरिकों में राष्ट्रभक्ति, अनुशासन, सेवा, और भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव का भाव जागृत करना है। संगठन का कार्य मुख्य रूप से “शाखाओं” के माध्यम से चलता है, जहाँ अनुशासन, शारीरिक प्रशिक्षण और बौद्धिक चिंतन का समावेश होता है।
बैठक का उद्देश्य और महत्व:
इस वर्ष की बैठक इसलिए भी विशेष रही क्योंकि यह आरएसएस के स्थापना के 100 वर्ष यानी शताब्दी वर्ष के ठीक पहले आयोजित हो रही है। बैठक में संघ के कार्यों की समीक्षा, भविष्य की योजनाएँ, और देश-विदेश में घट रही प्रमुख घटनाओं पर विचार-विमर्श हुआ। साथ ही, यह बैठक आगामी कार्यक्रमों की रणनीति बनाने, संगठनात्मक विस्तार की रूपरेखा तय करने और सामाजिक समरसता बढ़ाने हेतु प्रस्ताव पारित करने का माध्यम बनी।
बैठक के प्रमुख बिंदु
1. शाखा विस्तार की समीक्षा
बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएस की शाखाओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। वर्तमान में देश भर में 73,646 स्थानों पर शाखाएं लग रही हैं, जिनमें 51,710 स्थानों पर प्रतिदिन शाखाएं और शेष स्थानों पर साप्ताहिक मिलन हो रहा है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 10,000 से अधिक की वृद्धि है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी संघ की उपस्थिति सुदृढ़ हुई है, जहाँ 3,000 से अधिक नई शाखाएँ प्रारंभ हुई हैं।
यह आंकड़े न केवल संघ के सामाजिक प्रभाव का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि देश के युवाओं में संघ के प्रति आकर्षण बढ़ा है।
2. शताब्दी वर्ष की तैयारियाँ
संघ के स्थापना के 100 वर्ष 2025 में पूरे हो रहे हैं। इस अवसर को ‘शताब्दी वर्ष’ के रूप में मनाने के लिए व्यापक योजना बनाई जा रही है। इस वर्ष की बैठक में इस संदर्भ में विशेष चर्चा हुई। प्रमुख बिंदु निम्न रहे:
- 100 वर्षों की यात्रा का दस्तावेजीकरण
- विशेष शताब्दी समारोह
- कार्य विस्तार अभियान, विशेषतः उन क्षेत्रों में जहाँ संघ की उपस्थिति अभी कमजोर है
- दो वर्षों के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की नियुक्ति – अब तक 2,453 कार्यकर्ताओं ने पूर्णकालिक सेवा हेतु स्वयं को प्रस्तुत किया है
3. राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा और प्रस्ताव
संघ की इस प्रतिनिधि सभा में दो प्रमुख प्रस्तावों पर चर्चा हुई:
i) बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार
बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर बांग्लादेश में हिंदुओं, बौद्धों और अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर चिंता जताई गई। प्रस्ताव में भारत सरकार से अपील की गई कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस विषय को गंभीरता से उठाए और बांग्लादेश सरकार पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का दबाव बनाए।
ii) रानी अब्बक्का का स्मरण
संघ की इस बैठक में वीरांगना रानी अब्बक्का की 500वीं जयंती को श्रद्धांजलि स्वरूप एक वक्तव्य जारी किया गया। रानी अब्बक्का दक्षिण भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी मानी जाती हैं, जिन्होंने पुर्तगालियों के विरुद्ध संघर्ष किया था। उनका स्मरण भारत की वीरांगनाओं के गौरवशाली इतिहास को युवाओं से जोड़ने का प्रयास है।
4. मणिपुर संकट पर प्रतिक्रिया
बैठक में मणिपुर की अस्थिरता और जातीय हिंसा पर भी चिंता जताई गई। संघ का मानना है कि पिछले 20 महीनों से जारी अशांति में केंद्र सरकार के प्रयासों से कुछ शांति की आशा बनी है, लेकिन अभी और काम करने की आवश्यकता है।
संघ के कार्यकर्ता स्थानीय स्तर पर शांति स्थापित करने और सामाजिक समरसता की दिशा में कार्यरत हैं। बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि जातीय द्वेष और क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए दीर्घकालिक योजनाएँ बनानी होंगी।
5. प्रशिक्षण और युवाओं की भूमिका
आरएसएस की विशेषता उसका प्रशिक्षित कार्यकर्ता तंत्र है। बैठक में निर्णय लिया गया कि वर्ष 2025 में कुल 95 प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाएंगे:
- संघ शिक्षा वर्ग (प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष)
- कार्यकर्ता विकास वर्ग
- प्रौढ़ प्रशिक्षण वर्ग
संघ की यह नीति रही है कि युवा वर्ग को राष्ट्रीय चरित्र, नेतृत्व क्षमता और समाज सेवा के संस्कारों से संपन्न किया जाए। इस दिशा में प्रशिक्षण वर्गों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
6. सेवा कार्यों का विस्तार
संघ की 89,706 सेवा गतिविधियाँ इस समय देश भर में संचालित हो रही हैं। ये गतिविधियाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, ग्राम विकास और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में संघ प्रेरित संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे गुरुकुल, विद्यालय और संस्कार केंद्र ग्रामीण भारत में परिवर्तन ला रहे हैं।
7. भविष्य की दिशा और चिंतन
बैठक में चिंतन हुआ कि आज की परिस्थिति में भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और सांस्कृतिक दृष्टि से जागरूक बनाने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को जोड़ना आवश्यक है। संघ की योजना है कि आने वाले वर्षों में:
- हर गाँव में कम से कम एक शाखा
- हर जिले में सेवा प्रकल्प
- हर विद्यालय में एक बाल संस्कार केंद्र
- महिलाओं की अधिक सक्रिय सहभागिता
साथ ही, यह भी निश्चय किया गया कि भारतीय भाषाओं के संवर्धन और मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य तेज किया जाएगा।
भाजपा से जुड़ाव: सहयोग लेकिन स्वतंत्रता
बैठक में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। यद्यपि संघ और भाजपा के बीच वैचारिक साम्य है, लेकिन संगठनात्मक रूप से दोनों स्वतंत्र हैं। बैठक में स्पष्ट किया गया कि संघ का कार्य राजनीति से ऊपर है और उसका उद्देश्य समाज निर्माण है, न कि सत्ता प्राप्ति।
निष्कर्ष:
आरएसएस की यह बैठक एक बार फिर यह स्पष्ट कर गई कि संगठन का ध्यान केवल शाखाओं की संख्या बढ़ाने पर नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, राष्ट्र सेवा, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण पर है। शताब्दी वर्ष की पृष्ठभूमि में यह बैठक भविष्य की दिशा निर्धारित करने वाला मार्गदर्शक बन गई है।
भविष्य में संघ की भूमिका केवल एक संगठन तक सीमित न रहकर एक सांस्कृतिक आंदोलन की तरह व्यापक होने जा रही है, जिसका प्रभाव भारत की शिक्षा, संस्कृति, राजनीति और समाज पर गहराई से पड़ता रहेगा।
