प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज करेंगे पांडुलिपि मिशन का शुभारंभ: भारत की सांस्कृतिक धरोहर को मिलेगा नया जीवन
"प्रधानमंत्री मोदी पांडुलिपि मिशन शुभारंभ आज करने जा रहे हैं। यह मिशन भारत की हजारों वर्षों पुरानी पांडुलिपियों को संरक्षित, शोध-संपन्न और डिजिटल रूप से उपलब्ध कराने की एक ऐतिहासिक पहल है। इस कदम से देश की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिलने की उम्मीद है।"
पांडुलिपि मिशन क्या है?
पांडुलिपि मिशन एक राष्ट्रीय स्तर का प्रोजेक्ट है जिसका उद्देश्य है –
- भारत में उपलब्ध प्राचीन पांडुलिपियों की खोज,
- उनका संरक्षण, डिजिटलीकरण और वर्गीकरण,
- और उन्हें जनता, शोधकर्ताओं व छात्रों के लिए सुलभ बनाना।
इस मिशन के तहत संस्कृत, प्राकृत, पालि, तमिल, फारसी, अरबी, और अन्य भाषाओं में लिखी लाखों दुर्लभ पांडुलिपियाँ संरक्षित की जाएंगी।
क्यों ज़रूरी है यह मिशन?
भारत की प्राचीन पांडुलिपियाँ इतिहास, विज्ञान, चिकित्सा, धर्म, दर्शन, गणित और खगोलशास्त्र जैसे विषयों का खजाना हैं।
- इनमें छिपा ज्ञान न केवल ऐतिहासिक बल्कि आधुनिक विज्ञान के लिए भी उपयोगी हो सकता है।
- लेकिन बहुत-सी पांडुलिपियाँ समय, नमी, कीट और उपेक्षा के कारण नष्ट होने की कगार पर हैं।
इसलिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस मिशन का शुभारंभ, भारत की सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।
प्रधानमंत्री मोदी का योगदान
प्रधानमंत्री मोदी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के पक्षधर रहे हैं।
- उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, सोमनाथ पुनर्विकास, राम मंदिर निर्माण जैसे परियोजनाओं को प्राथमिकता दी।
- अब पांडुलिपियों के क्षेत्र में यह पहल यह दिखाती है कि मोदी सरकार ज्ञान परंपरा को भी संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
मिशन के अंतर्गत क्या-क्या होगा?
- राष्ट्रीय पांडुलिपि केंद्र की स्थापना और विस्तार
- पांडुलिपियों का स्कैनिंग और डिजिटल आर्काइव बनाना
- रिजिस्ट्री पोर्टल जहां कोई भी अपनी निजी पांडुलिपियाँ रजिस्टर करवा सके
- शोधकर्ताओं के लिए फेलोशिप और प्रशिक्षण कार्यक्रम
- स्थानीय भाषाओं में पांडुलिपियों का अनुवाद और प्रकाशन
डिजिटल इंडिया के साथ जोड़ता है यह प्रयास
पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण मिशन सीधे डिजिटल इंडिया पहल से जुड़ता है।
- इससे भारत के सांस्कृतिक ज्ञान को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वैश्विक रूप से उपलब्ध कराया जा सकेगा।
- विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और आम नागरिकों के लिए ओपन एक्सेस डिजिटल लाइब्रेरी तैयार की जाएगी।
कितना बड़ा है पांडुलिपियों का खजाना?
भारत में अनुमानतः एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियाँ उपलब्ध हैं –
- सिर्फ संस्कृत में ही 70 लाख से अधिक
- शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन, तांत्रिक परंपराओं से जुड़ी हजारों रचनाएँ
- विज्ञान, वनस्पति, चिकित्सा जैसे विषयों पर भी अद्भुत सामग्री
राज्य स्तर पर भागीदारी
सरकार इस मिशन को राज्य सरकारों, निजी संग्रहालयों और मंदिर संस्थाओं के सहयोग से आगे बढ़ाएगी।
- दक्षिण भारत में तमिल और तेलुगु पांडुलिपियाँ
- कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में शैव और वैदिक रचनाएँ
- गुजरात, राजस्थान और मध्य भारत में जैन और लोक परंपराओं से जुड़ी पांडुलिपियाँ
प्रेस कॉन्फ्रेंस और जनजागरूकता
प्रधानमंत्री के शुभारंभ के बाद देशभर में जनजागरूकता अभियान, सेमिनार, और प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाएँगी।
- विश्वविद्यालयों में “पांडुलिपि अध्ययन केंद्र” स्थापित किए जाएंगे।
- छात्रों और शोधार्थियों के लिए डिजिटल टूलकिट और ऑनलाइन कोर्स शुरू होंगे।
प्रधानमंत्री का वक्तव्य क्या हो सकता है?
प्रधानमंत्री मोदी संभवतः इस अवसर पर कह सकते हैं:
“पांडुलिपियाँ हमारी आत्मा की आवाज़ हैं। यह मिशन न केवल अतीत से जोड़ता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए ज्ञान का दीपक जलाएगा।”
"प्रधानमंत्री मोदी पांडुलिपि मिशन शुभारंभ कर भारत के सांस्कृतिक और बौद्धिक इतिहास को संरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं। यह पहल न केवल पांडुलिपियों को बचाएगी, बल्कि भारत को ज्ञान-संपन्न राष्ट्र के रूप में फिर से स्थापित करने में सहायक होगी।"
