Newsखबर आपकीराजनीतिराज्यों सेराष्ट्रीय

भारत में राजनीति और विरोध: लोकतंत्र की ताकत या संकट ?

भारत में राजनीति और विरोध: एक ऐतिहासिक रिश्ता

“भारत में राजनीति और विरोध साथ-साथ चलते आए हैं। आज़ादी की लड़ाई से लेकर हालिया कृषि आंदोलन तक, विरोधों ने हमेशा सत्ता को चुनौती दी है | राजनीति केवल चुनाव और सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें आम जनता की भागीदारी अनिवार्य होती है।”


विरोध और आंदोलन क्या दर्शाते हैं ?

जब भी कोई सरकार जनभावनाओं के खिलाफ कोई कदम उठाती है, तो जनता सड़कों पर उतरती है।

यह विरोध किसी एक वर्ग, संस्था या नेता तक सीमित नहीं होते। ये लोकतंत्र की आत्मा हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग जवाबदेह रहें।


ऐतिहासिक आंदोलनों की झलक

1. चंपारण सत्याग्रह (1917)

महात्मा गांधी का पहला आंदोलन जिसने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी।

2. जेपी आंदोलन (1974)

राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा शक्ति का विस्फोट, जिसने इमरजेंसी की नींव रखी।

3. अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (2011)

जन लोकपाल की मांग ने दिल्ली की सड़कों पर जनता की ताकत दिखा दी।

4. किसान आंदोलन (2020-2021)

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसानों ने एक वर्ष तक विरोध प्रदर्शन किया।


वर्तमान समय में विरोध की राजनीति

आज देश के हर हिस्से में छोटे-बड़े मुद्दों पर विरोध हो रहे हैं। कभी जाति आधारित आरक्षण तो कभी बेरोज़गारी या महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे केंद्र में होते हैं।

राजनीतिक दल भी इन विरोधों का उपयोग अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं।


क्या विरोध से राजनीतिक अस्थिरता आती है ?

भारत में राजनीति और विरोध का संबंध गहरा है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या विरोध देश में अस्थिरता लाते हैं?

उत्तर है – नहीं, अगर विरोध शांतिपूर्ण और संविधान के दायरे में हों।

दूसरी ओर, अगर विरोध हिंसक रूप ले लें, तो वे समाज में विभाजन और अशांति पैदा करते हैं।


सोशल मीडिया का असर

आज के युग में विरोध सिर्फ सड़कों पर नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी होता है।

ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर हैशटैग्स के ज़रिए जनभावना को व्यापक समर्थन मिलता है।

हालांकि, फेक न्यूज़ और अफवाहें भी तेज़ी से फैलती हैं, जिससे माहौल बिगड़ सकता है।


सरकारों की भूमिका और प्रतिक्रिया

कई बार सरकारें विरोध को दबाने की कोशिश करती हैं। कभी इंटरनेट बंद किया जाता है, तो कभी धारा 144 लगाई जाती है।

इन कदमों से विरोध की शक्ति को कम किया जा सकता है, लेकिन जनता की आवाज़ को हमेशा दबाया नहीं जा सकता।


संविधान और विरोध का अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होने का अधिकार देता है।

हालांकि, यह अधिकार भी कुछ सीमाओं के अंतर्गत आता है जैसे कि सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता।


विरोध का भविष्य: कैसे हो और क्या बदलाव लाए ?

  1. विरोध शांतिपूर्ण और रचनात्मक हो
  2. संवाद और बातचीत के लिए खुले रहें
  3. राजनीतिक दल इसे केवल राजनीतिक हथियार न बनाएं
  4. मीडिया संतुलित और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग करे
  5. जनता को विरोध के कानूनी अधिकारों की जानकारी हो

Please Read and Share