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प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को बताया छोटे बच्चों के लिए क्रांतिकारी कदम, मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को किया उजागर

“प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत छोटे बच्चों को मातृभाषा में शिक्षित करने की पहल का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह नीति बच्चों की शिक्षा में गहराई, रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने और सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करने का एक सशक्त माध्यम है। प्रधानमंत्री ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान के एक्स पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह विचार साझा किए।”

PIB द्वारा जारी किया

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: एक नई दिशा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत की शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक और समावेशी बनाने की एक व्यापक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य है:

  1. मातृभाषा आधारित शिक्षा: बच्चों को कक्षा 5 तक (आवश्यकतानुसार कक्षा 8 तक) उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में शिक्षित करना।
  2. रचनात्मकता और सोच का विकास: रटने की प्रवृत्ति से हटकर बच्चों की सोचने-समझने और प्रश्न पूछने की क्षमता का विकास करना।
  3. सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित करना: मातृभाषा के माध्यम से बच्चों को अपनी संस्कृति, परंपरा और स्थानीय परिवेश से जोड़ना।
  4. डिजिटल संसाधनों का उपयोग: शिक्षा के लिए डिजिटल तकनीक और ऑनलाइन संसाधनों को मातृभाषा में उपलब्ध कराना।

प्रधानमंत्री का विजन

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भारत में ज्ञान और नवाचार की एक नई पीढ़ी तैयार होगी। उन्होंने कहा, “मातृभाषा में शिक्षा से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे वैश्विक मंच पर भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पाएंगे।”

NEP 2020 के प्रभाव

  • प्राथमिक विद्यालयों में मातृभाषा आधारित पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं।
  • शिक्षकों को स्थानीय भाषाओं में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • डिजिटल माध्यमों से क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षण सामग्री तैयार की जा रही है।
  • मातृभाषा आधारित शिक्षा के साथ बच्चों को अन्य भाषाएं सीखने के अवसर भी प्रदान किए जाएंगे।

शोध और विशेषज्ञों की राय

शोध बताते हैं कि बच्चों के शुरुआती सालों में मातृभाषा में शिक्षा से उनके मस्तिष्क का विकास तेजी से होता है। मातृभाषा में पढ़ाई से जटिल विषयों को आसानी से समझा जा सकता है और यह बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को सहज बनाता है।

शिक्षाविदों का मानना है कि यह कदम न केवल बच्चों की शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को भी सशक्त करेगा।

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