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पी.वी. नरसिम्हा राव की जयंती पर देशभर में श्रद्धांजलि: दूरदर्शी नेतृत्व और ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों को किया गया स्मरण

नई दिल्ली, 28 जून 2025 — भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित पी.वी. नरसिम्हा राव की जयंती के अवसर पर देश के विभिन्न नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनका योगदान आज भी भारत के आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक विकास में मील का पत्थर माना जाता है।”


राजनीतिक नेतृत्व ने जताया सम्मान

इस अवसर पर कई प्रमुख नेताओं ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों से नरसिम्हा राव की दूरदर्शिता और सुधारवादी नीतियों को याद किया:


मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों की श्रद्धांजलि


1991 के ऐतिहासिक आर्थिक सुधार: एक नया भारत

पी.वी. नरसिम्हा राव का कार्यकाल (1991-1996) भारत के लिए निर्णायक था। उस समय भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था और विदेशी मुद्रा भंडार मात्र कुछ हफ्तों के लिए शेष था।

उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ मिलकर जो आर्थिक सुधार शुरू किए, वे भारत की लाइसेंस राज व्यवस्था को समाप्त करने वाले और बाजार उन्मुक्तिकरण की दिशा में पहला ठोस कदम थे। इस नीति के कुछ प्रमुख पहलू थे:


‘लुक ईस्ट’ नीति: भारत की विदेश नीति में परिवर्तन

पी.वी. नरसिम्हा राव ने केवल अर्थव्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि भारत की विदेश नीति को भी नया दृष्टिकोण दिया। उनकी ‘Look East’ Policy के अंतर्गत भारत ने दक्षिण एशियाई देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करना शुरू किया।

यह नीति आज भी एक्ट ईस्ट नीति के रूप में जीवंत है और भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति की नींव मानी जाती है।


प्रशासनिक दक्षता और सांस्कृतिक ज्ञान

नरसिम्हा राव केवल राजनेता ही नहीं, बल्कि एक बहुभाषाविद, विद्वान और लेखक भी थे। उन्होंने 10 से अधिक भाषाओं में महारत हासिल की थी। उनका प्रशासनिक कौशल, निर्णय क्षमता और राजनीतिक चतुराई उन्हें एक विशिष्ट नेता बनाती है।

उनकी राजनीतिक चुप्पी और कार्यों की तीव्रता का अद्वितीय मेल उन्हें बाकी प्रधानमंत्रियों से अलग बनाता है।

देश के विकास में नरसिम्हा राव की भूमिका

आज जब भारत वैश्विक मंच पर एक आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि इसकी नींव पी.वी. नरसिम्हा राव के समय में रखी गई थी। उनकी दूरदर्शी सोच, साहसिक फैसले और नीतिगत समझदारी ने देश को आर्थिक गुलामी से बाहर निकाल कर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया।


पी.वी. नरसिम्हा राव की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उन मूल्यों और निर्णयों को स्मरण करने का समय है जिन्होंने आज के भारत की नींव रखी। वे उन चंद नेताओं में से हैं, जिनका प्रभाव राजनीति से बाहर जाकर देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे तक महसूस किया जा सकता है।”

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