चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के वोट चोरी बयान को बताया भ्रामक और तथ्यहीन
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के वोट चोरी बयान को बताया भ्रामक और तथ्यहीन
“लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल ही में चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) पर वोट चोरी में शामिल होने का गंभीर आरोप लगाया है। इस बयान को लेकर चुनाव आयोग की फैक्ट चेक टीम ने कड़ा जवाब दिया है। आयोग ने कहा कि यह बयान न केवल तथ्यहीन और भ्रामक है बल्कि चुनाव प्रक्रिया में शामिल लाखों अधिकारियों और कर्मचारियों की निष्ठा पर सवाल उठाता है, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।”
क्या कहा राहुल गांधी ने?
कांग्रेस द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जारी एक वीडियो में राहुल गांधी ने सीधे चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि वह वोट चोरी में शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास 100% सबूत हैं। उनके अनुसार:
“हमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और लोकसभा चुनावों में संदेह था। हमने अपना इन्वेस्टिगेशन कराया जो 6 महीने चला। हमारे पास जो सबूत हैं, वो एटम बम हैं। जो भी इसमें शामिल हैं, हम उन्हें ढूंढ निकालेंगे, चाहे वे रिटायर्ड हों या कहीं भी हों।”
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि एक करोड़ वोट गलत तरीके से जोड़े गए, और चुनाव आयोग इस संबंध में सहयोग नहीं कर रहा।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया: फैक्ट चेक और तर्क
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों पर स्पष्ट और सख्त जवाब दिया है। ईसीआई की फैक्ट चेक यूनिट ने तथ्यों के साथ कहा:
1. निर्वाचक नामावली (Electoral Rolls) की पारदर्शिता:
- कर्नाटक में लोकसभा चुनाव के लिए नामावली तैयार करने में
31 जिला निर्वाचन अधिकारी (DEOs), 419 ERO/ AERO और 58,834 बीएलओ शामिल थे। - सभी राजनीतिक दलों, जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी, को प्रारूप और अंतिम नामावली की प्रतियाँ दी गई थीं।
- किसी भी पार्टी, यहां तक कि कांग्रेस ने कोई औपचारिक आपत्ति या अपील दर्ज नहीं की।
2. चुनाव प्रक्रिया में सहभागिता:
- 2.82 लाख से अधिक पोलिंग और पीठासीन अधिकारी,
- 28 ROs, 259 AROs,
- 4,230 काउंटिंग सुपरवाइजर और असिस्टेंट,
- 113 ऑब्जर्वर — सभी ने चुनाव निष्पक्ष ढंग से संपन्न कराया।
3. चुनाव परिणामों के विरुद्ध याचिकाएं:
- लोकसभा चुनाव 2024 एक साल से अधिक पहले संपन्न हो चुका है।
- इस चुनाव में केवल 10 चुनाव याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें एक भी कांग्रेस उम्मीदवार द्वारा दाखिल नहीं की गई।
- जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 80 के तहत यह कानूनी अधिकार मौजूद है।
चुनाव आयोग की नाराजगी: शब्दों पर सवाल
ईसीआई ने यह भी कहा कि राहुल गांधी द्वारा उपयोग किए गए शब्द जैसे "चोरी", "एटम बम", "छोड़ेंगे नहीं", "हिंदुस्तान के खिलाफ" — यह भाषा लोकतांत्रिक संस्थानों को डराने और बदनाम करने के बराबर है।
“एक साल बाद लाखों चुनाव कर्मियों की निष्ठा पर सवाल उठाना, बार-बार धमकी देना और वोट चोरी जैसे शब्दों का प्रयोग करना गैर-जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण है।”
कानूनी पक्ष: क्या कहा गया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत:
- कोई भी उम्मीदवार चुनाव परिणाम के खिलाफ 45 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दायर कर सकता है।
- इस बार कांग्रेस के किसी उम्मीदवार ने यह अधिकार प्रयोग नहीं किया।
चुनाव आयोग का तर्क है कि अगर वास्तव में कोई ठोस सबूत थे, तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत समय रहते पेश करना चाहिए था, बजाय इसके कि अब एक साल बाद मीडिया में बयान दिए जाएं।
राजनीतिक विश्लेषण: बयानबाज़ी या गंभीर आरोप?
राहुल गांधी के इस बयान को कुछ लोग राजनीतिक रणनीति मानते हैं, तो कुछ इसे लोकतंत्र की संस्थाओं पर अविश्वास के रूप में देख रहे हैं। जहां एक ओर विपक्ष सत्ता पक्ष पर चुनाव में धांधली के आरोप लगाता रहा है, वहीं इस बार यह आरोप सीधे चुनाव आयोग पर व्यक्तिगत रूप से लगाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस तरह के आरोप सबूतों के बिना बार-बार दोहराए जाते हैं, तो इससे न केवल आम नागरिकों में भ्रम फैलता है, बल्कि लोकतंत्र की नींव भी कमजोर होती है।
जनता के लिए क्या मायने रखता है यह विवाद?
- चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की साख दांव पर है।
- राजनीतिक दलों के बीच भरोसे की कमी उजागर हो रही है।
- आम नागरिकों में वोटिंग प्रक्रिया को लेकर संशय पैदा हो सकता है।
- संविधान प्रदत्त अधिकारों का सही समय पर उपयोग महत्वपूर्ण है।
“राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों पर चुनाव आयोग ने कठोर शब्दों में जवाब देते हुए तथ्यों को सार्वजनिक किया है। सवाल यह नहीं है कि असहमति क्यों है, बल्कि यह है कि क्या ऐसी असहमति का समाधान लोकतांत्रिक और कानूनी प्रक्रिया के जरिए होना चाहिए या सार्वजनिक धमकियों के माध्यम से? एक जिम्मेदार लोकतंत्र में संवैधानिक संस्थाओं और राजनीतिक नेतृत्व को परस्पर विश्वास और जवाबदेही के साथ कार्य करना चाहिए। चुनाव में सुधार की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन सुधार की राह संवैधानिक विमर्श और साक्ष्य आधारित संवाद से होकर गुजरती है।”
