आरबीआई की 50 बेसिस प्वाइंट रेपो रेट कटौती: क्या इस कदम से भारत की आर्थिक वृद्धि को मिलेगा नया पंख?
"भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल ही में अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 55वीं बैठक (4–6 जून 2025) के अलावा एक महत्वपूर्ण फैसला लिया: आरबीआई रेपो रेट कटौती करके इसे 5.50% कर दिया गया। यह फैसला आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की दोहरी रणनीति का हिस्सा है।"
इस लेख में हम आरबीआई रेपो रेट कटौती के समग्र प्रभाव, इसके पीछे की रणनीति तथा भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
RBI ने क्यों उठाया यह कदम? – आर्थिक पृष्ठभूमि और MPC का विश्लेषण
आरबीआई रेपो रेट कटौती
- MPC (Monetary Policy Committee) की बैठक 4–6 जून 2025 को हुई जिसमें व्यापक आर्थिक आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
- भारत की वास्तविक GDP वृद्धि Q4‑2024‑25 में 7.4% रही, जो Q3 (6.4%) की तुलना में बेहतर है; वार्षिक वृद्धि 6.5% रही।
- मौद्रिक नीति का प्रमुख उद्देश्य: मध्यम अवधि में CPI आधारित मुद्रास्फीति को 4%±2% तक लाना और साथ ही आर्थिक वृद्धि को गति देना।
Repo Rate क्या है और किन दरों पर असर पड़ेगा?
रेपो रेट कटौती
- Repo Rate वह दर है जिस पर RBI बैंकों को उधार देती है। कटौती से बैंक सस्ता ऋण ले पाएंगे।
- इससे Standing Deposit Facility (SDF) 5.25% पर आ गया, जबकि MSF/Bank Rate अब 5.75% है।
- ब्याज दरें कम होने से उद्योग, उपभोक्ता, और सरकारी पूंजीगत व्यय को फायदा होगा।
ब्याज दरों में बदलाव का प्रत्यक्ष असर
- बैंकिंग ऋण की लागत में गिरावट → उद्यम और उपभोक्ता कर्ज भी सस्ता होगा।
- उद्योग में निवेश को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि लेनदेन लागत कम होगी।
- खपत बढ़ेगी, घरेलू मांग मजबूत होगी।
- सरकारी पूंजीगत खर्च जैसे बुनियादी ढाँचा योजनाएं अधिक प्रभावशाली होंगी।
वैश्विक और घरेलू कारक जो फैसले को प्रभावित करते हैं
वैश्विक अनिश्चितताएं
- सामरिक तनाव, वैश्विक व्यापार असुरक्षा और मौसमीय बदलाव अभी भी चिंता का विषय हैं।
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट सकारात्मक संकेत देती है, लेकिन सोने के दाम अब भी ऊँचे हैं।
घरेलू स्थितियाँ
- शेयर बाजार में स्थिर सुधार।
- बैंकिंग प्रणाली में तरलता का प्रवाह बढ़ा है।
- सरकार की बड़ी पूंजीगत योजनाओं से अर्थव्यवस्था को सहयोग मिल रहा है।
RBI का अनुमान: 2025‑26 की तिमाहीवार वृद्धि दर
| तिमाही | अनुमानित GDP विकास दर |
|---|---|
| Q1 | 6.5% |
| Q2 | 6.7% |
| Q3 | 6.6% |
| Q4 | 6.3% |
यह वृद्धि दर निजी खपत, निवेश और सरकारी खर्च पर आधारित है, जो RBI की नीतिगत शिथिलता (Policy Easing) से और मजबूत होगी।
कटौती का दीर्घकालिक लाभ और जोखिम
संभावित फायदे
- निवेश में तेजी: परियोजनाओं पर फंडिंग सस्ती होगी।
- खपत में वृद्धि: घर-गृहस्थी में खर्च की गुंजाइश बढ़ेगी।
- बेरोजगारी में कमी: उद्योग वृद्धि से नौकरियों में इजाफा।
- उत्पादन में उछाल: निर्माण और विनिर्माण सेक्टर लाभान्वित होंगे।
जोखिम और चुनौतियाँ
- मुद्रास्फीति का उछाल: कम ब्याज दर से CPI बढ़ सकता है।
- वैश्विक दबाव: तेल-चीन-यूएस जैसी घटनाओं से भारत कम नहीं होगा।
- मौद्रिक नीति सीमाएं: RBI के पास भी एक सीमा है, अत: अन्य उपायों का सहारा जरूरी।
RBI रेपो रेट कटौती पर विशेषज्ञों की राय
बैंकिंग विशेषज्ञ कहते हैं
- सस्ती तरलता से वाणिज्यिक बैंक अधिक ऋण देते हैं।
- गृह लोन, ऑटो लोन, MSME ऋण प्रभावित होंगे।
अर्थशास्त्री कहते हैं
“50 बेसिस प्वाइंट की यह कटौती उचित समय पर आर्थिक प्रोत्साहन का संकेत है।”
“मुद्रास्फीति कम हुई, लेकिन सावधानी जरूरी है।”
(उदाहरण स्वरूप विशेषज्ञ की वैबसाइट से उद्धरण शामिल करें।)
ऋणग्रस्त ग्राहक और उद्योगों के लिए क्या मायने रखता है?
गृह ऋण और शिक्षा ऋण
ब्याज दर में गिरावट सीधे EMI में कमी का कारण बनेगी, जिससे उपभोक्ताओं पर आर्थिक भार हल्का होगा।
MSMEs और स्टार्ट‑अप
- अस्थायी नकदी प्रवाह में सुधार
- लोन लेने की प्रवृत्ति बढ़ेगी
- उद्योग विस्तार और नई नौकरियों का सृजन होगा
RBI की रणनीति और आगे की राह
आरबीआई की यह रेपो रेट कटौती मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने और आर्थिक वृद्धि को पुनः गति देने की स्पष्ट कोशिश है। हालांकि वैश्विक अनिश्चितताएं बनी हुई हैं, लेकिन घरेलू संकेत सकारात्मक हैं। निवेश, उधार, उद्योग, और खपत में सुधार की उम्मीद बनी रहेगी।
"इस निर्णय का प्रभाव तुरंत दिखाई देगा, विशेषकर कर्ज की लागत और क्रय शक्ति में। यह कदम सरकार के पूंजीगत व्यय प्रोत्साहन से मिलकर अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा की ओर ले जाने की क्षमता रखता है।"
