राष्ट्रपति भवन में आयोजित कला उत्सव 2025 में सोहराई कला की स्वदेशी भित्तिचित्र परंपरा का प्रमुख स्थान
“झारखंड की सोहराई कला ने कला उत्सव 2025 में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया। इस विशेष कार्यक्रम में, जो राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया, सोहराई कला की स्वदेशी भित्तिचित्र परंपरा को भारत की समृद्ध लोक और आदिवासी कला परंपराओं के उत्सव के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह आयोजन भारतीय कला की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।”
प्रधानमंत्री श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और कला उत्सव 2025 में अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई। राष्ट्रपति ने सोहराई कला की प्रदर्शनी का अवलोकन किया और कलाकारों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की। उनका कहना था, "यह कलाकृतियाँ भारत की आत्मा को दर्शाती हैं – प्रकृति से हमारा जुड़ाव, हमारी पौराणिक कथाएँ और हमारा सामुदायिक जीवन।" राष्ट्रपति ने कलाकारों के समर्पण की भी प्रशंसा की और उनकी कड़ी मेहनत को सम्मानित किया।
सोहराई कला का इतिहास और महत्व
सोहराई कला झारखंड के आदिवासी समुदायों द्वारा बनाई जाने वाली एक पारंपरिक भित्तिचित्र कला है। यह कला विशेष रूप से फसल कटाई और त्योहारों के मौसम में महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। सोहराई भित्तिचित्रों में प्राकृतिक मिट्टी के रंगों और बांस के ब्रशों का इस्तेमाल किया जाता है। इन चित्रों में जानवरों, पौधों, और ज्यामितीय आकृतियों का चित्रण किया जाता है, जो कृषि जीवन और आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़े होते हैं।
कला उत्सव 2025 में सोहराई कला का प्रदर्शन
कला उत्सव 2025 में सोहराई कला के साथ झारखंड के आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रमुखता दी गई। हजारीबाग जिले के दस प्रसिद्ध सोहराई कलाकारों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिनमें सुश्री रुदन देवी, सुश्री अनीता देवी, सुश्री सीता कुमारी, सुश्री मालो देवी, सुश्री साजवा देवी, सुश्री पार्वती देवी, सुश्री आशा देवी, सुश्री कदमी देवी, सुश्री मोहिनी देवी, और सुश्री रीना देवी शामिल थीं। इन कलाकारों ने अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन किया और दर्शकों के सामने सोहराई कला की विस्तृत जानकारी साझा की।
