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जगन्नाथ मंदिर से जुड़े रहस्य और मान्यताएं

पुरी के जगन्नाथ मंदिर का रहस्य: चमत्कारी कथाएं और अद्भुत मान्यताएं

“भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह रहस्यों और चमत्कारों का खजाना भी है। कलियुग के भगवान माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ से जुड़ी अनेक कथाएं हैं जो श्रद्धा, रहस्य और आस्था का अनोखा संगम प्रस्तुत करती हैं।”


रथ यात्रा: जब भगवान जाते हैं मौसी के घर

पुरी की रथ यात्रा हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। यह यात्रा 9 दिनों की होती है, जिसके बाद भगवान वापस श्रीमंदिर लौटते हैं।

इस यात्रा में सबसे पहले बलभद्र जी का रथ निकलता है, फिर सुभद्रा जी का रथ, और अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ। सुभद्रा के रथ की सुरक्षा के लिए उनके दोनों भाई आगे और पीछे चलते हैं और रथ के ऊपर सुदर्शन चक्र विराजमान होते हैं।


क्यों बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ?

हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान को ठंडे जल से स्नान कराया जाता है, जिसे ‘स्नान पूर्णिमा’ कहा जाता है। इसके बाद भगवान बीमार हो जाते हैं और 15 दिन तक एकांतवास करते हैं। इस परंपरा को "अनासर काल" कहा जाता है। यह परंपरा ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में वर्णित है और राजा इंद्रद्युम्न द्वारा शुरू की गई थी।


लक्ष्मी जी क्यों होती हैं नाराज?

भगवान जब अपने भाई-बहन के साथ गुंडीचा मंदिर चले जाते हैं और लक्ष्मी माता को साथ नहीं ले जाते, तब लक्ष्मी जी क्रोधित हो जाती हैं। वे गुंडीचा मंदिर जाकर भगवान जगन्नाथ से शिकायत करती हैं और नाराज़ होकर उनके रथ का एक पहिया तोड़ देती हैं। इसे लक्ष्मी विजय या हेरा पंचमी कहा जाता है।


भगवान कैसे मनाते हैं लक्ष्मी जी को?

रथ यात्रा से लौटते समय भगवान लक्ष्मी जी को साड़ी और रसगुल्ले भेंट करते हैं। पहले ये उपहार अंदर भेजे जाते हैं, और जब लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं तब प्रभु को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिलती है। मंदिर में प्रवेश के बाद दोनों एक-दूसरे पर रसगुल्ले फेंकते हैं। यह अनोखा उत्सव रसगुल्ला भोग के नाम से प्रसिद्ध है।


ध्वज और नीलचक्र: अद्भुत रहस्य

पुरी मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। हर दिन इसे बदला जाता है। मान्यता है कि अगर एक दिन भी यह न बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।

मंदिर की चोटी पर विराजमान नीलचक्र या सुदर्शन चक्र भी चमत्कारी है। शहर के किसी भी कोने से आप इसे देखें तो ऐसा प्रतीत होगा कि यह चक्र आपकी ही ओर मुख किए हुए है


जगन्नाथ मंदिर की रसोई: दुनिया की सबसे बड़ी रसोई

पुरी के जगन्नाथ मंदिर की रसोई को 'रसोई घर' कहा जाता है। यहां हर दिन हजारों-लाखों लोगों के लिए भोग बनाया जाता है, और कभी भी भोग की कमी नहीं होती

यहां खास बात ये है कि सात मिट्टी के बर्तनों में खाना एक-दूसरे के ऊपर रखकर पकाया जाता है, लेकिन सबसे ऊपर रखा बर्तन पहले पकता है और नीचे वाला सबसे अंत में।


समुद्र की आवाज़ मंदिर के अंदर क्यों नहीं सुनाई देती?

पुरी के समुद्र तट के पास स्थित होने के बावजूद, जैसे ही कोई मंदिर की चौखट पार करता है, समुद्र की लहरों की आवाज़ पूर्णतः बंद हो जाती है। बाहर तेज़ गर्जना सुनाई देती है लेकिन अंदर गहराई से शांति का अनुभव होता है।


मंदिर के चार द्वार और उनके अर्थ

पुरी मंदिर के चारों द्वार चार युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं:

  • पूर्व दिशा का सिंह द्वार – मोक्ष का प्रतीक
  • दक्षिण दिशा का अश्व द्वार – विजय का प्रतीक
  • पश्चिम दिशा का हस्ति द्वार – समृद्धि का प्रतीक
  • उत्तर दिशा का व्याघ्र द्वार – धर्म का प्रतीक

हर द्वार से जुड़ी अपनी मान्यताएं हैं और भक्त इनसे संबंधित आशीर्वाद की कामना करते हैं।


तीसरी सीढ़ी: यमराज का वास

पुरी मंदिर की 22 सीढ़ियां “बैसी पहाचा” कहलाती हैं। इनमें से तीसरी सीढ़ी काले रंग की है और इसे “यमशिला” कहा जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, यमराज ने भगवान जगन्नाथ से शिकायत की थी कि उनके दर्शन मात्र से लोग मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं और यमलोक खाली हो गया है। तब भगवान ने उन्हें तीसरी सीढ़ी पर स्थान दिया और कहा कि जो भी मेरे दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर पैर रखेगा, उसे यमलोक भी देखना पड़ेगा। इसलिए यह सीढ़ी पवित्र मानी जाती है और उस पर पैर नहीं रखा जाता।


श्रद्धा, विज्ञान और रहस्य का संगम

पुरी का जगन्नाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, पुराणों और आस्था का जीवंत प्रमाण है। यहां की हर परंपरा, हर आयोजन और हर रहस्य हमें यह सिखाता है कि हमारी प्राचीन मान्यताएं आज भी आश्चर्य और प्रेरणा से भरपूर हैं।

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सुनील शर्मा

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