भारत में रामसर स्थलों की सूची में जोड़े गए दो नए स्थल: खीचन और मेनार
"भारत में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। राजस्थान के दो आर्द्रभूमि क्षेत्रों—खीचन (फलोदी, जोधपुर) और मेनार (उदयपुर)—को अंतरराष्ट्रीय महत्व के रामसर स्थलों के रूप में मान्यता मिली है। इन दोनों स्थलों के शामिल होने के साथ ही भारत में रामसर स्थलों की संख्या अब 91 हो गई है।"
रामसर स्थल भारत: क्या है रामसर संधि और इसका महत्व
रामसर संधि एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसे 1971 में ईरान के रामसर शहर में पारित किया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया भर की महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों की पहचान और संरक्षण करना है। भारत ने 1982 में इस संधि को स्वीकार किया था।
रामसर स्थल भारत के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि ये जैव विविधता, पक्षियों की प्रजातियों, जल संरक्षण और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा में योगदान करते हैं।
खीचन आर्द्रभूमि: प्रवासी पक्षियों का प्रिय स्थल
राजस्थान का खीचन गांव, विशेष रूप से डेमोज़ेल क्रेन (कुरजां पक्षी) के लिए प्रसिद्ध है। हजारों की संख्या में ये प्रवासी पक्षी हर साल खीचन आते हैं। यहां का आर्द्र पर्यावरण और संरक्षण प्रयास इसे एक आदर्श रामसर स्थल भारत बनाते हैं।
- स्थान: फलोदी, जोधपुर
- प्रसिद्ध पक्षी: डेमोज़ेल क्रेन
- महत्व: प्रवासी पक्षियों के लिए सुरक्षित आश्रय
मेनार झील: पक्षी प्रेमियों का स्वर्ग
उदयपुर जिले में स्थित मेनार गांव की आर्द्रभूमि पक्षी पर्यवेक्षकों के लिए एक अद्भुत स्थल है। यहां सर्दियों के मौसम में हजारों प्रवासी और स्थानीय पक्षी एकत्र होते हैं। जलवायु संतुलन बनाए रखने में यह झील अहम भूमिका निभाती है।
- स्थान: मेनार, उदयपुर
- मुख्य पक्षी प्रजातियाँ: रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, ग्रेटर फ्लेमिंगो, ग्रे लैग गूज
- उपयोगिता: स्थानीय समुदायों के लिए पानी और आजीविका का स्रोत
पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर बड़ी घोषणा
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर इस उपलब्धि की जानकारी साझा की। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक और उपलब्धि बताया।
उनके अनुसार, “यह एक प्रमाण है कि भारत सतत विकास की दिशा में प्रतिबद्ध है और हमारी सरकार जलवायु और पारिस्थितिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।”
रामसर स्थल भारत: क्यों जरूरी है इनका संरक्षण
भारत जैसे जैवविविधता-सम्पन्न देश के लिए रामसर स्थलों का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि:
- ये जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करते हैं।
- बाढ़ नियंत्रण और जल शुद्धिकरण में सहायक होते हैं।
- स्थानीय समुदायों को रोजगार और संसाधन प्रदान करते हैं।
- पशु-पक्षियों की कई संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षण मिलता है।
भारत में प्रमुख रामसर स्थल की सूची
अब जब भारत में कुल 91 रामसर स्थल हो गए हैं, तो कुछ प्रमुख नाम हैं:
- केवला देव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान)
- चिल्का झील (ओडिशा)
- सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान (हरियाणा)
- लोकटक झील (मणिपुर)
- अष्टमुड़ी झील (केरल)
- हरिके वेटलैंड (पंजाब)
भविष्य की योजनाएँ और चुनौतियाँ
भारत में और भी आर्द्रभूमियों को रामसर सूची में शामिल करने की योजनाएँ हैं। हालांकि, शहरीकरण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। इसके लिए:
- प्रभावी नीति और योजनाओं की आवश्यकता है।
- समुदाय आधारित संरक्षण मॉडल अपनाना होगा।
- जागरूकता कार्यक्रमों की भूमिका भी अहम होगी।
भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर
खीचन और मेनार का रामसर सूची में शामिल होना रामसर स्थल भारत अभियान को नई गति देता है। यह केवल एक पर्यावरणीय उपलब्धि नहीं बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक धरोहर बचाने का संकल्प भी है।