सरकारी अस्पताल में डॉक्टर की लापरवाही से मरीज की मौत, विरोध करने पर परिजन पर पुलिस की बर्बरता
घटना का संक्षिप्त विवरण
“गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के पाटड़ी इलाके में स्थित सरकारी अस्पताल में एक व्यक्ति की मौत ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को झकझोर दिया, बल्कि पूरे राज्य में चिकित्सा सुविधाओं और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर न मिलने पर मरीज की मौत हो गई, और विरोध जताने पर पुलिस ने मृतक के परिजन को पीटकर हिरासत में ले लिया।”
कौन थे मृतक?
मृतक की पहचान राजेंद्र जादव के रूप में हुई है, जो बुबाना गांव के निवासी थे और सोलंडी गांव के स्कूल में प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत थे। पाटड़ी में उनका मकान निर्माणाधीन था और वे कुछ दिनों से वहीं रह रहे थे। घटना वाले दिन वे पानी की मोटर रिपेयर करवाने निकले थे जब उन्हें सीने में तेज दर्द हुआ। परिजनों ने उन्हें तुरंत पाटड़ी सरकारी अस्पताल पहुंचाया, लेकिन उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
परिजनों का आरोप: डॉक्टर समय पर मौजूद नहीं था
राजेंद्र जादव के परिजनों का गंभीर आरोप है कि जब उन्हें अस्पताल लाया गया, तब अस्पताल में कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। समय पर प्राथमिक इलाज न मिलने की वजह से राजेंद्र की जान चली गई। इस लापरवाही को लेकर परिजनों में भारी आक्रोश फैल गया।
पुलिस की कार्रवाई: मृतक के भतीजे को पीटा गया
स्थिति बिगड़ने पर पुलिस को अस्पताल बुलाया गया। लेकिन परिजनों और पुलिस के बीच विवाद बढ़ गया, जिसके बाद पाटड़ी के पुलिस इंस्पेक्टर बीसी छत्रोलिया और एएसआई भरतसिंह सहित 6-7 पुलिसकर्मियों ने मृतक के भतीजे रमेश जादव को पीटना शुरू कर दिया। आरोप है कि रमेश को थाने ले जाकर पूरी रात लॉकअप में रखा गया और उसे अपने चाचा के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होने दिया गया।
घटना का वीडियो वायरल, जांच के आदेश
इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। वीडियो में पुलिसकर्मी परिजन को पीटते नजर आ रहे हैं। लोगों ने इसे गुजरात पुलिस की क्रूरता और सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था करार दिया है। घटना के बाद सुरेंद्रनगर के डीआईजी डॉ. सुरेश पंड्या ने जांच के आदेश दिए हैं। जांच की जिम्मेदारी ध्रांगध्रा के डीवाईएसपी जे.डी. पुरोहित को सौंपी गई है। अधिकारियों ने दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
सोशल मीडिया पर आक्रोश
वीडियो के वायरल होते ही ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लोगों का आक्रोश फूट पड़ा। कई लोगों ने इसे "गुजरात मॉडल की विफलता" बताते हुए लिखा कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी और पुलिस की बर्बरता आम होती जा रही है।
एक यूजर ने लिखा, “मरीज की मौत, और ऊपर से पुलिस की मार—क्या यही है गुजरात का विकास मॉडल?”
दूसरे ने कहा, “खाकी पहनकर गुंडागर्दी क्यों? मरीज के परिजन को पीटना कहां की इंसानियत है?”
कई लोगों ने दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
अस्पतालों की हालत और पुलिस जवाबदेही पर उठे सवाल
यह घटना ना सिर्फ डॉक्टरों की अनुपस्थिति की गंभीरता को दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि पुलिस किस हद तक जाकर विरोध को दबाने की कोशिश करती है। अगर समय रहते डॉक्टर उपलब्ध होते तो शायद राजेंद्र की जान बच सकती थी। दूसरी ओर, एक grieving परिवार से इस तरह का व्यवहार पुलिस की संवेदनहीनता को दर्शाता है।
अब क्या होगा आगे?
जांच अधिकारी डीवाईएसपी पुरोहित द्वारा रिपोर्ट तैयार की जा रही है।जिम्मेदार पुलिसकर्मियों और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई संभव है।सोशल मीडिया पर लगातार जनता का दबाव बन रहा है।
सबक और सवाल
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की मौत की नहीं है, बल्कि एक सिस्टम की नाकामी की कहानी है। सवाल यह है कि—
क्या डॉक्टरों की अनुपस्थिति के लिए कोई जवाबदेह होगा?क्या पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा?और क्या पुलिस सुधार की ज़रूरत पर गंभीरता से सोचा जाएगा?
